कानपुर के नवोदित ग़ज़लकार आनन्द पाण्डेय तन्हा की कुछ गजलें
यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ ।
सुधेश
ग़ज़ल-1
जो हमारे जिस्म की दुश्वारियाँ हैं,
इक नये परवाज़ की तैयारियाँ हैं।
मुफ़लिसी की इक तरफ़ लाचारियाँ हैं,
इक तरफ़ ईमान की खुददारियाँ हैं।
बेटियों को भी मुनासिब परवरिश दें,
ये महकती जाफ़रानी क्यारियाँ हैं।
सिर्फ़ वन्दनवार फूलों के लगाये,
और सारी कागज़ी फुलवारियाँ हैं।
अजनबी से हैं मुनासिब दूरियाँ ही,
क्या पता किस ज़हन में ऐयारियाँ हैं।
वो रकीबों से मिलें,क्या उज्र हमको,
हाँ, चलें दिल पर हमारे ,आरियाँ हैं।
दीजिये मत नाम इनको रोशनी का,
ये सियासी-मज़हबी चिंगारियाँ हैं।
हम कसीदे, काढ़ते हैं कागज़ों पर,
ये हमारी रूह की गुलकारियाँ हैं ।
जाफ़रानी-केसरिया, रक़ीब-प्रतिस्पर्धी, उज्र-आपत्ति, गुलकारी-बेल-बूटे बनाना
ग़ज़ल-2
संग पर भी निशान छोड़ रहे,
यूँ नहीं हम जहान छोड़ रहे।
हौसला है नहीं, कि पंख नहीं,
क्यों अभी आसमान छोड़ रहे।
फ़िक्र में क्यों भविष्य की आख़िर,
आप यह वर्तमान छोड़ रहे।
काश्तकारी, ज़मीन भी अपनी,
मुफ़लिसी में किसान छोड़ रहे।
छोड़ कर आप इन बुजुर्गों को,
धूप में सायबान छोड़ रहे।
फ़िक्र औलाद जब नहीं करती,
हम ज़ईफ़ी - थकान छोड़ रहे।
सब्र कर ज़िन्दगी, कि दम ले लें,
हम कहाँ इम्तिहान छोड़ रहे।
गैर को दावते - सुख़न भेजी,
क्यों हमें साहिबान छोड़ रहे।
सँग-पत्थर, सायबान-छज्जा/Shade, ज़ईफ़ी- बुढापा, दावते-सुख़न -काव्य पाठ हेतु निमंत्रण
ग़ज़ल-3
ये मुनासिब नहीं हर किसी से मिलें,
जो मुहब्बत करे बस उसी से मिलें।
नूर पैदा करें जुगनुओं की तरह,
उम्र भर के लिये रोशनी से मिलें।
हो गए आज हिन्दू-मुसलमां सभी,
ऐ ख़ुदा हम कहाँ आदमी से मिलें।
एक दिन आप-हम क्या न होंगे फ़ना,
दुश्मनी छोड़िये, दोस्ती से मिलें।
हमसफ़र हैं हज़ारों, मगर हमनवा,
एक भी हो अगर हम ख़ुशी से मिलें।
रूह में हम सभी की उतर जाएंगे
शर्त ये है कि हम सादगी से मिलें।
कुछ न कुछ तो ख़ुदा की करामात है,
हम कहीं भी गये, आप ही से मिलें।
रूह की प्यास अब तक बुझी ही नहीं,
लग रहा है ख़ुदाया तुझी से मिलें।
काम का रह गया है नहीं जिस्म अब,
क्यों न हम फिर नई ज़िन्दगी से मिलें।
अंजुमन में सुख़नवर न तन्हा मिला,
हम किधर मुख़्तलिफ़ शायरी से मिलें।
फ़ना-नष्ट होना, हमनवा-समान दृष्टिकोण वाला
ग़ज़ल-4
अब न कोई वबाल दे मौला,
सिर्फ़ रोशन ख़याल दे मौला।
शम्स, मेरा बदन, जलाता है,
चाँदनी दे , हिलाल दे मौला।
ज़िक्र जब प्यार का करे कोई,
सिर्फ़ मेरी मिसाल दे मौला।
दौलतें, शुहरतें न दे हमको,
ज़िन्दगी बे-मिसाल दे मौला।
देख लूँ मैं ज़रा अना अपनी,
रूह मेरी खँगाल दे मौला।
क़ल्ब में जब ग़ुरूर आ जाये,
एक पत्थर उछाल दे मौला।
पेट भर लें,किसी तरह मुफ़लिस,
संग ही तू, उबाल दे मौला।
ये बता, क्या, मज़ा मिले तुझको,
मत किसी को ज़वाल दे मौला।
मौत का ख़ौफ़ है नहीं, लेकिन,
मौत इस वक़्त टाल दे मौला।
शर्त ये है, कि साथ हो तेरा,
स्वर्ग से तू निकाल दे मौला।
सिर्फ़ तुकबन्दियाँ न हों हमसे,
शायरी बा-क़माल दे मौला।
शम्स-सूरज, हिलाल-नया चाँद, क़ल्ब-हृदय,संग-पत्थर ,ज़वाल,-पतन
ग़ज़ल 5
ज़मी ज़रख़ेज़ थी दिल की मगर बंजर बना डाला,
मुसल्सल गर्दिशों ने क़ल्ब को पत्थर बना डाला।
वफ़ा के गीत लिखना चाहता था यूँ कलम हरदम,
सितम के सोज़ ने इसको मगर ख़ंजर बना डाला।
बहुत नज़दीकियों की वज्ह से वो कह नहीं पाये,
सफ़र यह हमसफ़र ने ही बहुत दुष्कर बना डाला।
मुक़म्मल नींद जब आयी न हमको नर्म गद्दों पर,
निकल कर, दूब की कालीन को बिस्तर बना डाला।
हमें महसूस होती है , तुम्हारी रूह की ख़ुशबू,
तसव्वुर ने तुम्हारे जिस्म का पैकर बना डाला।
महज इक संग का टुकड़ा, कहें मत आप अब उसको,
हमारी जब अक़ीदत ने उसे शंकर बना डाला।
न भूलेंगे कभी भी हम , तुम्हारे लम्स का जादू,
मुजस्सम फूल सा जिसने हमें छू कर बना डाला।
बतायें काट दें कैसे शजर हम सहन का तन्हा,
परिंदों ने मुहब्बत से यहाँ इक घर बना डाला।
ज़रख़ेज़-उपजाऊ/fertile, मुसल्सल-लगातार,
क़ल्ब-हृदय, सोज़-गर्मी/तपन, तसव्वुर-कल्पना
पैकर-देह/आकृति, अक़ीदत-श्रद्धा, लम्स- स्पर्श, मुजस्सम- साक्षात, शजर- पेड़, सहन-आँगन
ग़ज़ल 6
आग ही तो लगा रहा मज़हब,
भाड़ में जाये आपका मज़हब।
ओढ़िये पैरहन मुहब्बत का,
छोड़िये भी सड़ा-गला मज़हब।
रोज़ दुनिया बदल रही लेकिन,
आज तक है वहीं खड़ा मज़हब।
इस क़दर खौफ़ हो गया तारी,
एक से दूसरा डरा मज़हब।
देखिये बेवकूफियाँ इसकी,
जाफ़रानी कहीं हरा मज़हब।
सोचते थे, उरूज देगा यह,
किंतु निकला ज़वाल का मज़हब।
तिफ़्ल को गोद में लिया जब से,
ताक पर तब से रख दिया मज़हब।
मग़फ़िरत से नहीं ये वाबस्ता,
धर्म से है बहुत जुदा मज़हब।
इक झलक नूर की मिली उसके,
ज़हन से फिर उतर गया मज़हब।
पैरहन- वस्त्र, जाफ़रानी- केसरिया,उरूज- उत्थान, ज़वाल-पतन, तिफ़्ल-बच्चा, मग़फ़िरत-मोक्ष, वाबस्ता-संबंधित
आनन्द पांडेय " तनहा "
पता- 128/800-Y- ब्लाक, क़िदवई नगर कानपुर-208011
मेल-aanandtanha@gmail.com
फोन/व्हाट्सएप- 9451221580, 9369110036
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(०४-०४-२०२०) को "पोशाक का फेर "( चर्चा अंक-3661 ) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
**
अनीता सैनी
सुन्दर प्रस्तुति
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