Hindi poems / Alka kansra / Chandi Garh Punjab
चण्डीगढ़ गढ़ में रसायन शास्त्र की प्रोफ़ेसर श्रीमती अलका कांसरा
हिन्दी की सफल कवयित्री भी हैं । उन की कई पुस्तकें छपी हैं ।
वे कई पुरस्कार भी पा चुकी हैं । यहाँ उन की कुछ कविताएँ प्रस्तुत
की जा रही हैं ।
सुधेश
मुलाक़ात ख़ुद से
चुपचाप बैठे बैठे
आज यूँ ही खुल गई
ज़िन्दगी की किताब
और मैं पढ़ती चली गई
एक के बाद एक
पन्ना पलटती गई
ज़िन्दगी की किताब
मुझे मेरा ही अक्स
दिखलाती गई
मुझ से मेरी ही
मुलाक़ात करवाती गई
क्या सोचती हूँ
क्या चाहती हूँ
चुपके से कान में
बतलाती चली गई।
अलका काँसरा
औरत
एक उम्र बीत जाती है
औरत को औरत होने का
मतलब समझने में
औरत तो बीज है
जो धरती में
दबना जानती है
अंकुरित होती है
नये पौधे को जन्म देती है
इसी में अपना विस्तार भी
ढूँढ लेती है
यह क्षमता औरत में ही तो है
औरत तो धुरी है
जिसके इर्द गिर्द
घर संसार घूमता है
हर एक
सदस्य की ज़रूरत
वह समझती है
यह धुरी न रहे
तो घर परिवार
बिखर ही तो जाता है
औरत जीवन के
हर मज़बूत रिश्ते की बुनियाद है
वह रिश्ते बनाना भी जानती है
और ख़ुद को मिटा कर
रिश्ते निभाना भी जानती है
औरत नहीं तो
हर रिश्ता बेमानी हो जाता है
परिवार और रिश्तों के
ताने बाने को सम्भालते हुए
अपनी ख़ुशी ढूँढ लेना
अपनी इच्छाओं से
परिचित होना
अपने जीवन के
मायने समझना
अपनी एक अलग पहचान बनाना
और फिर सब कुछ पा कर
सहज बने रहना
घर की चारदीवारी के अन्दर
सिर्फ़ और सिर्फ़
माँ, बहन, बेटी या पत्नी बने रहना
यह क्षमता औरत में ही तो है।
अलका काँसरा
रिश्तों का सफ़र
ज़िन्दगी के रिश्तों का
पुरपेच घुमावदार सफ़र
पहाड़ के घुमावदार रास्तों से
कुछ कम तो नहीं
पहाड़ की ख़ूबसूरत
ऊँचाइयों पर पहुँचने के लिए
यह दुर्गम सफ़र
तय करना ही पड़ता है
ज़िंदगी में भी
रिश्तों का सफ़र
तय करना ही होगा
कभी चीड़ की ख़ुशबू लिए
ठण्डी बयार की तरह रिश्ते
कभी प्यार की बौछार करते ये रिश्ते
और कभी दुर्गन्ध छोड़ते रिश्ते
मानो डीज़ल का धुआँ छोड़ती
कोई बस पहाड़ पर चड़ रही हो
फिर भी पहाड़ के ये दुर्गम रास्ते
सदा ही अपनी ओर
आकर्षित करते हैं
ये रिश्ते भी सदा ही बुलाते हैं
बनते हैं बिगड़ते है
ज़िन्दगी के सफ़र में
खट्टी मीठी यादें
छोड़ जाते हैं
ज़िन्दगी को एक
रवानगी दे जाते हैं।
अलका काँसरा
तलाश
कहाँ से आए हैं
कहाँ को जाना है
किधर के हैं मुसाफ़िर
ये सफ़र अनजाना है
कुछ अनदेखा सा
पल पल बदलता यथार्थ
सुबह के बाद दोपहर शाम और रात
और फिर एक नया सवेरा
ग्रीष्म के बाद वर्षा शरद और बसन्त
साँसों का आना जाना
अनन्त काल से चला आ रहा यह चक्र
क्या और क्यूँ हो रहा है
इस सबसे अनजान
निरन्तर कर्म करता इन्सान
या फिर कर्मों का भुगतान करता मुसाफ़िर
क्या जीवन भी एक निरन्तर सफ़र है
आत्मा का
एक जीवन से दूसरे जीवन तक
न जाने कितनी बार
न जाने किस तलाश में
शायद उसी ऊपर वाले की
जो हमें तराश रहा निरन्तर।
अलका काँसरा
अर्धविराम
एक अर्धविराम से दूसरे अर्धविराम
के बीच चलती ज़िन्दगी
हर अर्धविराम कुछ खट्टी कुछ मीठी
यादें छोड़ जाता है
कुछ अनुभव और कुछ सीख
दे जाता है
और दे जाता है जन्म
बहुत सी
संभावनाओं और आशाओं को
इस भागती ज़िन्दगी में
ज़िन्दगी की घड़ी कब रुक जाए
कब पूर्णविराम लग जाए
यह तो केवल
ऊपर वाला ही जानता है।
अलका काँसरा
जीवन साथी
अग्नि को साक्षी मान कर
एक दूसरे का हाथ थामे
यह कहाँ से कहाँ
आ गए हम
न जाने
कितने उतार चढ़ाव
पार कर गये हम
जीवन की दोपहरी बीती
और ढलती हुई शाम
भी आ गई
पहले घण्टों बातें करते थे
फिर भी समय
कम पड़ जाता था
और आज
ख़ामोश बैठे हुए भी
एक दूसरे के होने का
अहसास है
ख़ामोशी बाँट लेना भी
कितना ख़ूबसूरत लगता है
यह भी
जीवन जीने का
कुछ अलग ही अन्दाज़ है
बिन कहे
बिन बोले
दिल की बात
जान जाते हैं
न जानें, न समझें
तो शायद
धरती भी डोल जायेगी
आख़िरकार अग्नि को
साक्षी मान कर
चाँद तारों की छांव तले
एक दूसरे का
हाथ थामा था
बिन तकरार
अलका
अलका काँसरा
शिक्षा : M.Sc, M.Phil ( Chemistry )
कार्य क्षेत्र : Retired from MCMDAV College for Women, Chandigarh as HOD Chemistry
वर्तमान में स्वतंत्र लेखन ।
विभिन्न स्कूलों एवम् यूनिवर्सिटी में निशुल्क काउंसलर के रूप में कार्यरत
सम्मान व पुरस्कार : शिक्षा और सामाजिक कार्यों में उत्कृष्ट सेवा हेतु Best Citizen of India award
रोटरी क्लब , लाइयंज़ क्लब एवम् सिनीयर सिटिज़न सोसायटी, पंचकुला, Art of Living, Chandigarh द्वारा सम्मानित
प्रकाशित : ‘ पीढ़ियों के क्षितिज ‘ ( कविता संग्रह ),
पत्रिका पुष्पगंधा में कविताएँ प्रकाशित
विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में अंग्रेज़ी में आर्टिकल प्रकाशित
पत्रिका Life Style Journalist में छः महीने cooking column
उत्तम हिन्दू और दैनिक सवेरा अख़बार में कवितायें
Social substance द्वारा करोना महामारी के दौरान साँझा संकलन ‘ बहारें फिर भी आएँगी “ में मेरी कविता ‘ अदना सा मानव ‘
साँझा संकलन “जज़्बात के समंदर “ में मेरी सात कवितायें
साहित्यिक संस्था “ अभिव्यक्ति “, “ राष्ट्रीय कवि संगम मनांजलि “, “रचनाकार दिल्ली “ और “क़लम और सोच “ की सदस्यता
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