Thursday, 13 March 2014

चयनित कविताएँ


 चयनित कविताएँ

महलों में पलने वाले
कारों में चलने वाले
गरीबी हटाएंगे
समाजवाद लायेंगे
इन्होने हमेशा
हराम की खाई है
हराम की खाएंगे!!

जगदीश सुधाकर,
खतौली · , ज़िला मुज़फ़्फ़रनगर उ प्र् )
( रिषभदेव शर्मा के सौजन्य से )

एकान्त चाहिये मुझे
अकेलापन नहीं
क्योंकि एकान्त है मन की एकाग़ता
जब कि मन का उचटना
सब से कटना है अकेलापन ।
एकान्त रचता है
पर अकेला चना भाड़ नहीं भूंजता ।
-- सुधेश
( दिल्ली )

 कहीं तो
जाता होगा रस्ता
फूलों वाली छाँव से होकर
हर जंगल
वनवास नहीं होता होगा -
से ।

पूर्णिमा वर्मन
( शारजाह , यू ए ई )

जो पुल बनाएँगे
वो अनिवार्यत: पीछे रह जाएँगे
सेनाएँ हो जाएँगी पार
मारे जाएँगे रावण
जयी होंगे राम
जो निर्माता रहे
इतिहास में बन्दर कहलाएँगे|
- अज्ञेय
शारदा सुमन के सौजन्य से ।


जो चुप हैं
क्या वे सच में
बचे रह पाएंगे?
आज तो
ज़िंदा रहने की अनिवार्य शर्त है
खुलकर बोलना
उन तमाम लोगों के खिलाफ़
जो हमारे ‪#‎बोलने_जीने‬ के हक़ को
छीन लेना चाहते हैं !
बाक़ी काम होते रह सकेंगे
बाद में भी !
- -- मोहन श्रोत्रिय
( जयपुर ,राजस्थान )

सुबह के नखरे

एक प्याला
चाय के लिए
रात भर सफ़र करता है
सड़कों पर दूध ,
मेज पर
दुनिया परसने के लिए
रात भर गोदी जाती हैं
कागज़ के सीने पर
ख़बरों की
सुर्खियाँ ,
और ....
अंधेरों के किवाड़ों पर
देने के लिए
दस्तक
पूरी धरती तय करता है
रोज़ सूरज ,
और इस तरह
रात भर जागती है
पूरी कायनात
इस एक अदद
सुबह के नखरे उठाने को .... |
-- संध्या सिंह
( लखनऊ उ प्र )











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