व्यवसाय से सी ए रुचि से कवि और ब्लागर दिगम्बर नासवा की
कुछ गजलें प्रस्तुत कर रहा हूँ ।
सुधेश
किस्मत जब अच्छी लिखवाई होती है
जेबों में तब पाई पाई होती है
आसमान पे नज़र टिकाई होती है
खेतों में जब फसल उगाई होती है
जिसने भी ये आग लगाई होती है
तीली हलके से सुलगाई होती है
चौड़ा हो जाता है बापू का सीना
बेटे की जिस रोज कमाई होती है
उनका दिल टूटा तो वो भी जान गए
मिलने के ही बाद जुदाई होती है
हो जाता है दिल सूना घर सूना सा
बेटी की जिस रोज बिदाई होती है
धूल जमी है पर दफ्तर के कोने में
गांधी की तस्वीर सजाई होती है
शहरों की चंचल चितवन के क्या कहने
मेकप की इक परत चढाई होती है
बूढी कमर झुकी होती है पर घर की
जिम्मेदारी खूब उठाई होती है
बस वही मेरी निशानी, है अभी तक गाँव में
बोलता था जिसको नानी, है अभी तक गाँव में
खंडहरों में हो गई तब्दील पर अपनी तो है
वो हवेली जो पुरानी, है अभी तक गाँव में
चाय तुलसी की, पराठे, मूफली गरमा गरम
धूप सर्दी की सुहानी, है अभी तक गाँव में
याद है घुँघरू का बजना रात के चोथे पहर
क्या चुड़ेलों की कहानी, है अभी तक गाँव में ?
लौट के आऊँ न आऊँ पर मुझे विश्वास है
जोश, मस्ती और जवानी, है अभी तक गाँव में
दूर रह के गाँव से इतने दिनों तक क्या किया
ये कहानी भी सुनानी, है अभी तक गाँव में
आस्तीनों में छुपी तलवार है
और कहता है की मेरा यार है
गर्मियों की छुट्टियां भी खूब हैं
रोज़ बच्चों के लिए इतवार है
सच परोसा चासनी के झूठ में
छप गया तो कह रहे अख़बार है
चैन से जीना कहाँ आसान जब
चैन से मरना यहाँ दुश्वार है
दर्द में तो देख के राज़ी नहीं
यूँ जताते हैं की मुझको प्यार है
खुद से लड़ने का हुनर आता नहीं
कह रहा जो खुद को फिर सरदार है ।
कानपुर में जन्मे , दुबई , मलेशिया में नौकरी करने वाले दिगम्बर नसवा की गजलें मुझे बहुत पसन्द हैं ।
ReplyDeleteबहुत आभार सर मेरी गजलों को मंच प्रदान करने के लिए ...
Deleteआपका बहुत बहुत आभार ... मेरा सौभाग्य है साहित्यायन में प्रकाशित हुआ ...
ReplyDeleteबहुत आभारी हूँ आपका ...
बेहतरीन सृजन👌| आदरणीय दिगंबर नसवा जी का लेखन हमेशा ही लाजबाब रहता है
ReplyDeleteहार्दिक बधाई एवं ढेरों शुभकामनाएँ उन्हें
सादर
दिगम्बर जी आप कानपुर से हैं...मैं कानपुर में हूँ... आपका एक डाई हार्ड फैन...कभी दर्शन दीजिये...👍
ReplyDelete