Monday, 9 March 2020

मृत्युंजय साधक के कुछ दोहे

मृत्युंजय साधक के दोहे.....


1..लोहे- सरिए जोड़के, खर्चे किए करोड़।

  सबसे ऊँचा कौन हो,लगी बुतों की होड़।।

2...बाढ़ चढ़ाने आ गई, नरमुंडों का हार।

कंकालों के ढेर में, सिसक रहा केदार ।।

3..बंजर धरती हो गई, जीवन की बदहाल।

भावों का सूखा पड़ा , फटा हृदय तत्काल।।

4....अरी मिसाइल ! इस तरह, मत बन तू शैतान।

छितरीं कितनी जिंदगी, छितरा पड़ा विमान ।।

5....महिला वर्दी का किया, अफ़सर ने अपमान।

वर्दी बेदर्दी हुई , औ रक्षक हैवान।।

6....पद पैसे की चाह ने, फेरा ऐसा मंत्र।

यंत्र-सुचालित हो गया, भ्रष्टाचारी तंत्र ।।

7...दानवता को शह मिली, मानवता को मात।

दुनिया भर में है मचा, बारुदी उत्पात।।

8...सुविधा ने जब तज दिये, जग के सारे मीत।

दुविधा की ही हो रही, तब से साधक जीत।।

9..अरमानों की भीड़ में, जगे नये अरमान।

कुछ को मंजिल मिल गई, कुछ के निकले प्राण।।

10...बुझती बाती को मिली, तनिक स्नेह की धार।

पुन सुसज्जित मन हुआ, पहन ज्योति का हार।।

11...ऐसे ही सजती रहे, रंगों की यह रेख।

रंगों में सब एक हैं, रामू-डेविड-शेख।।

12....अपराधी हैं मौज में, तैर रहें हैं खूब।

अत्याचारी बाढ़ में, देश गया है डूब ।।

13...उजियारे की चाह में, व्याकुल है संसार।

धूप –धाम में छा रही, लेकिन धुंध अपार ।।

14.... दुनिया को नवनीत का, देता है उपहार ।।

मन को मथ कर लिख रहा, साधक दोहे चार।

15..नाची, झूमी गीत पर, मतलब से अनजान।

‘कोलाबेरी’ गा रही, कलियुग की संतान।।

16....जीवन-गाड़ी चल रही, दुख का इंजन जोड़।

खाई में जा कर गिरी, सुख की पटरी छोड़।।

17...माली ने जब चुन लिए, उपवन के सब शूल।

कलियाँ तब से सोचतीं, बड़े मज़े में शूल।।

18..दीवारों की कोख़ में , पीपल की है पैठ।

खंड-खंड घर कर दिए, मुंडेरी पर बैठ।।

19....दाना तो मिलता नहीं, टूट रहा विश्वास।

-व्यथित हृदय से बोल के, चूजा हुआ उदास।।

20...अपने ही देने लगें, जब अपनों को चोट।

साधक किसको दोष दे, किसमें ढूढ़े खोट।।

21...अम्मा की चिट्ठी मिली, तुम कैसे हो लाल।

जब से पत्नी आ गई, पूछा कभी ना हाल।।

22...धरती कांपी और फिर, सागर भरे उछाल।

प्राण-प्राण पर छा गया, काल बहुत विकराल।।

23....पीर-पीर से कर रही, अपनी पीर बखान।

परपीड़ा के ताप से, झुलस उठा दिनमान ।।

24...दर्द बढ़ा तो बढ़ चले, हम ख़ुशियों की ओर।

बढ़ती जाती ज्यों निशा, लाती हर्षित भोर ।।

25....काले-गोरे से सभी, करता है जो प्यार।

दर्पण –से बन जाइए, सबको कर स्वीकार।।

26.....ऐ साधक इस बात में मोती -सी है आभ।

सभी लाभ में शुभ नहीं, पर हर शुभ में लाभ ।।

27.....अब तो शीतल धूप है, और चिलकती छाँव।

थके पथिक हैरान हैं, कहां मिलेगा ठाँव।।

28...नियति-नटी ने लिख दिए, दोनो को ही पत्र।

बाँच रहे सुख-दुख जिसे, पहन भरम के वस्त्र।।

29....दुखी आँख दिखला रही, जग का शोक अपार।

सुखी आँख भी रो रही , अपनी ख़ुशियां वार।।

30....धन्य –धन्य नदियाँ हुईं, खुश हैं पोखर ताल।

निज प्रतिबिम्ब निहारता, सूरज प्रात: काल।।

31....ठेलों के नवसिंधु में , रहीं ककड़ियाँ तैर।

जो आवे सो मोल ले, नहीं किसी से बैर ।।

...........मृत्युंजय साधक
प्रोड्यूसर, न्यूज़ नेशन
ई48, गौड़होम्स, गोविंदपुरम
ग़ाज़ियाबाद, यूपी
201013
मोबाइल......9891375604
                  8700914828

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (11-03-2020) को    "होलक का शुभ दान"    (चर्चा अंक 3637)    पर भी होगी। 
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
     -- 
    रंगों के महापर्व होलिकोत्सव की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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