एक संवाद
ठक ठक ठक ठक
कौन
जी,मैं कविता
अच्छा आओ बैठो
क्या लोगी
जी,मेरी हत्या होने वाली है
पहले बलात्कार फिर हत्या
यह रोज़ का क़म है
सिरफिरों का कार्यक़म है
तो मैं क्या करूँ मैं पुलिस नहीं
जी मेरी लाज बचा लो
कौए गिद्ध गैंडे रंगे सियार
मेरी जान के पीछे पड़े हैं
बूढ़ा बगुला भगत
सींटियां बजाता है
गघे भैंसे सबके सब कहते हैं
कि कविता के प्रेमी हैं
पर सच में वे मेरे हत्यारे हैं ।
तो मैं क्या करूँ
थाने जाओ
जी मेरे थाने तो आप हैं
आप साहित्य के थानेदार हैं
उस के ठेकेदार हैं
कला के संरंक्षक सुपरस्टार हैं
आप तो मेरी लाज बचाओ
मेरी पहचान को लौटाओ
मेरा भाई गद्य रोता फिरता है
कि ंउस के अधिक दोस्त
उस का पाला ंछोड़
कविता के हो गये हैं
आप ंआलोचक हैं
उन्हें समंझाओ कि
गद्य गद्य है और कविता कविता
गद्य फले फूले अच्छी बात है
वह मेरा भाई है
पर वह मुझ से ईर्ष्या छोड़े
मेरा नाम न हथियाए
मुझे जीने दे ।
जिस ने चार अक्षर पढ़े
या पढ़ कर भूले
मेरी तरफ़ लपकता है
मुझ से दोस्ती गाँठने
मैं माल की वस्तु नहीं
न बिकाऊ सामान
न कार्निश का काग़ज़ी गुलदस्ता
मैं ज़िन्दा इकाई
पर भोंपू कहते हैं
कविता मर गई
या मरने वाली है
मेरे बलात्कारी क्या मुझे ज़िन्दा छोड़ेंगे
लेकिन कान खोल सुनो
मैं जीना चाहती हूँ
मैं ज़िन्दा रहूँगी
मैं ज़िन्दा रहूँगी ।
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