मुहब्बतें ही यहाँ मुहब्बतें मुहब्बतें
ज़िन्दगी की यही हैं राहतें राहतें ।
बनाओगे कब तक यों दुनिया को दोज़ख़
चलेंगी कहाँ तक ये नफरतें नफरतें ।
उम़ भर आरज़ू का सफ़र चलचलाचल
आख़िरी वक़्त भी बची हसरतें हसरतें ।
उम़ भर पालते ही रहे दुश्मनी को
मरने के बाद ज़िन्दा रहीं ये चाहतें ।
नहीं वक़्त लगता है रुसवाई में तो
यहाँ मरने पर ही मिलती हैं इज़्ज़त्तें ।
पीपल के नीचे दिया जले
विरहन का मानो जिया जले ।
जो किसी याद में खोई सी
मेरी आँखों में दिया जले ।
रावण लंका में गरज रहा
उपवन में बैठी सिया जले ।
प़ीतम विदेश में खटता है
घर में घुटती राबिया जले ।
जंगल में घोर अंधेरे को
आलोकित करने दिया जले ।
पीपल पर भूतों का डेरा
क्या उन्हें भगाने दिया जले ।
पीपल पर दुबके हैं पंछी
उन को शंका आशियाँ जले । ।
दीपक से आग चुरा कर के
पटना राँची हल्दिया जले । । ( सुधेश )
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