चयनित शेर और ग़ज़लें
धूप में निकलो , घटाओं में नहा कर देखो ,
ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो ।
-- निंदा फ़ाज़िली
( मुम्बई )
जाने कितने फूल शबनम से भिगोती है सहर
ऐसा लगता है कि सारी रात रोती है सहर ।
शाम के होते ही होते रोज़ मर जाता है दिन
रोज़ आ कर ज़िन्दगी के बीज बोती है सहर ।
जब समुन्दर की सतह से झाँकता है आफ़ताब
तब कहीं जा कर सितारों को डुबोती है सहर ।
देखती रहती है ख़्वाबों की शरारत रात भर
और ताबीरों को सारा दिन संजोती है सहर ।
चाँद सूरज और दुनिया का है चक्कर क़म्बरी
कैसे होती शाम है और कैसे होती है सहर । ।
-- अन्सार क़म्बरी
( कानपुर उ प़ )
बिजली ने अब की बार मेरे घर को फिर चुना
घर और भी कई थे मेरे घर के आस पास ।
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-- अन्सार क़म्बरी
न हारा है इश्क और न दुनिया थकी है
दिया जल रहा है हवा चल रही है ।
- ख़ुमार बाराबंकवी
( जय प़काश मानस के सौजन्य से )
सफ़र में धूप तो होगी ,जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो ।
यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिरा के अगर तुम सम्हल सको तो चलो ।
हर इक सफ़र को है महफूज़ रास्तों की तलाश
हिफ़ाज़तों की रिवायत बदल सको तो चलो ।
यही है ज़िन्दगी कुछ ख़्वाब चंद उम्मीदें
इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो ।
किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं
तुम अपने आप को खुद ही बदल सको तो चलो ।
-- निंदा फ़ाज़िली
( जय कृष्णँ राय तुषार के सौजन्य से )
'
'आंसू किसी के पोंछ के मिलता है जो सुकून,
देते हैं वो सुकून ये दैरो हरम कहाँ'।
'कातिलों के मिली सुर्खियाँ,
हैं शहीदों को बस हाशिये' ।
'जो सोचो तो जिसे कहते हैं हम इतिहास का बनना
वो इंसानों के लाशों में बदलने की कहानी है' ।
-- लक्ष्मी शंकर वाजपेयी
( दिल्ली )
प़ेम चन्द़ सहजवाला केसौजन्य से ।
गए साल का लेखा-जोखा क्या रखना
नए साल में खोना - पाना , देखेंगे
-दीक्षित दनकौरी
1.1.2014
नयी नयी उम्मीदों का सुर ताल मुबारक हो
ढोलक तबला नाल मंजीरा झाल मुबारक हो ।
हक की खातिर लड़ते रहना बंद नहीं होगा
मेहनतकश मजदूरों को हड़ताल मुबारक हो ।
रोज नयी तरकीब जतन से जिंदा रहना है
रोज रात में दिन में रोटी दाल मुबारक हो ।
तिकड़म करने वाले तुर्रम खां भी बने रहें
गड़बड़झालों को केवल जंजाल मुबारक हो ।
पेड़ों पर हरियाली आये, नदियों में पानी
चिड़ियों को तिनका, दाना, खर, डाल मुबारक हो ।
भूल चूक लेनी देनी को कूड़े में डालो
बीत गया वह साल नया यह साल मुबारक हो ।
-- अविनाश दास
( दरभंगा , बिहार )
अनिल जनविजय के सौजन्य से ।
Umesh Mohan Dhawan *
वही लोग खामोश रहते है अक्सर
ज़माने में जिनके हुनर बोलते हैं ।
उमेश मोहन धवन
( कानपुर उ प़)
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन स्वामी विवेकानन्द जी की १५० वीं जयंती - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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