Sunday, 12 January 2014

चयनित शेर और ग़ज़लें


चयनित शेर और ग़ज़लें 

धूप में निकलो , घटाओं में नहा कर देखो , 
ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो ।
-- निंदा फ़ाज़िली 
( मुम्बई ) 

जाने कितने फूल शबनम से भिगोती है सहर 
ऐसा लगता है कि सारी रात रोती है सहर ।
शाम के होते ही होते रोज़ मर जाता है दिन 
रोज़ आ कर ज़िन्दगी के बीज बोती है सहर ।
जब समुन्दर की सतह से झाँकता है आफ़ताब 
तब कहीं जा कर सितारों को डुबोती है सहर ।
देखती रहती है ख़्वाबों की शरारत रात भर 
और ताबीरों को सारा दिन संजोती है सहर  ।
चाँद सूरज और दुनिया का है चक्कर क़म्बरी 
कैसे होती शाम है और कैसे होती है सहर । ।

-- अन्सार क़म्बरी 
( कानपुर उ प़ ) 

बिजली ने अब की बार मेरे घर को फिर चुना 
घर और भी कई थे मेरे घर के आस पास । 
-
-- अन्सार क़म्बरी 

न हारा है इश्क और न दुनिया थकी है
दिया जल रहा है हवा चल रही है । 

- ख़ुमार बाराबंकवी
( जय प़काश मानस के सौजन्य से ) 


सफ़र में धूप तो होगी ,जो चल सको तो चलो 
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो ।

यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता 
मुझे गिरा के अगर तुम सम्हल सको तो चलो ।

हर इक सफ़र को है महफूज़ रास्तों की तलाश 
हिफ़ाज़तों की रिवायत बदल सको तो चलो ।

यही है ज़िन्दगी कुछ ख़्वाब चंद उम्मीदें 
इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो ।

किसी के वास्ते राहें कहाँ बदलती हैं 
तुम अपने आप को खुद ही बदल सको तो चलो ।

-- निंदा फ़ाज़िली 
( जय कृष्णँ राय तुषार के सौजन्य से ) 

'
'आंसू किसी के पोंछ के मिलता है जो सुकून, 
देते हैं वो सुकून ये दैरो हरम कहाँ'।

'कातिलों के मिली सुर्खियाँ,
हैं शहीदों को बस हाशिये' ।

'जो सोचो तो जिसे कहते हैं हम इतिहास का बनना 
वो इंसानों के लाशों में बदलने की कहानी है' ।

-- लक्ष्मी शंकर वाजपेयी 
( दिल्ली ) 
प़ेम चन्द़ सहजवाला केसौजन्य से । 

गए साल का लेखा-जोखा क्या रखना 
नए साल में खोना - पाना , देखेंगे 

-दीक्षित दनकौरी 
1.1.2014


नयी नयी उम्‍मीदों का सुर ताल मुबारक हो
ढोलक तबला नाल मंजीरा झाल मुबारक हो ।

हक की खातिर लड़ते रहना बंद नहीं होगा
मेहनतकश मजदूरों को हड़ताल मुबारक हो ।

रोज नयी तरकीब जतन से जिंदा रहना है
रोज रात में दिन में रोटी दाल मुबारक हो ।

तिकड़म करने वाले तुर्रम खां भी बने रहें
गड़बड़झालों को केवल जंजाल मुबारक हो ।

पेड़ों पर हरियाली आये, नदियों में पानी
चिड़ियों को तिनका, दाना, खर, डाल मुबारक हो ।

भूल चूक लेनी देनी को कूड़े में डालो
बीत गया वह साल नया यह साल मुबारक हो ।

-- अविनाश दास 
( दरभंगा , बिहार ) 
अनिल जनविजय के सौजन्य से । 

Umesh Mohan Dhawan *
वही लोग खामोश रहते है अक्सर
ज़माने में जिनके हुनर बोलते हैं ।
उमेश मोहन धवन 
( कानपुर उ प़) 




1 comment:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन स्वामी विवेकानन्द जी की १५० वीं जयंती - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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