Sunday 14 June 2015

सर्वेश कुमार मिश्र की कविताएँ





सर्वेश कुमार मिश्र हिन्दी के नवोदित कवि हैं , जिन की अनेक रचनाएँ पत्रिकाओं में 
छप चुकी हैं । वे कवि सम्मेलनों में भी भाग लेते हैं । पिछले दिनों उन्हों ने वाराणसी 
के एक कवि सम्मेलन में मुझे भी निमन्त्रित किया था । मैं उस में नहीं जा सका । 


सर्वेश कुमार मिश्र की कविताएँ

        (१ ) 

तेरा ही गान करूँ 


मैं वेदों जितना ज्ञाता नहीं 
मैं तेरा भाग्य विधाता नहीं 
हे कविता! मैं फिर भी 
तेरा ही गान करूँ
तिमिर को दीपक दान करूँ।

तू आज है, कल लौट जाएगा
तेरी जगह कोई और पाएगा
हे सदी! मैं फिर भी 
हर क्षण का सम्मान करूँ 
काँटों का गुणगान करूँ।

समय खुद को दोहराता नहीं 
मैं साँसों का भाग्य विधाता नहीं
हे जिंदगी ! मैं फिर भी 
तेरा ही मद पान करूँ।

दुख  तो जीवन पर्यन्त नहीं 
दुख जीवन का अन्त नहीं 
हे ईश्वर! मैं फिर भी 
हँसकर दुखों का गान  करूँ ।

-सर्वेश कुमार मिश्रा


         (२)

     आकांक्षा
     ----------

चिलचिलाती धूप में 
नंगे तन 
तनकर खड़े 
पेड़ के काँटें भी 
संकोच में पड़ गए
तितलियाँ आ बैठीं 
जब सूखी टहनियों पर। 

-सर्वेश कुमार मिश्रा
भरथरा (लोहता)
वाराणसी-२२११०७ 
+९१-८१२-७७७७-४७७



      (३ ) 

झूलते मुँडेर
--------------

हे स्वरपति खग !
तुम ही तो हो,
जो चले आते हो 
पहर प्रभात
ऋतुराज का सन्देश लेकर
और गाते हो अपनी राग-ध्वनि में 
और फैला जाते हो क्षणभर के लिए 
वासंतिक खुशियाँ।
और छोड़ जाते हो चितवन में 
वह लम्बित आनन्द 
मैं जिसको ढूंढता हूँ 
अरण्यजन के इस कोलाहल में ।

हे स्वरपति खग !
तुम ही तो हो 
जो गाते हो निर्विरोध, निर्बाध 
और अपने स्वर-गुंजन से 
प्रेम को परिभाषित करते हो,
और तब तक गाते रहते हो 
जब तक नहीं मिलता कोई 
तुम्हारे राग से राग ।

हे स्वरपति खग !
तुम आज भी वही हो  
और तरु का यह किनारा भी,
जो मानव विरोध के बाद भी 
तनकर खड़ा हो जाता है तुम्हारे आने से पहले,
मगर आज नहीं कोई 
तुमसे राग मिलाने वाला ।

हे स्वरपति खग !
चलो! मैं ही आज
तुम्हारे राग से राग मिलाता हूँ
"कुऊ...कुऊ...कुऊ...!"
मगर तुम कल भी आओगे? 
इस जनअरण्य में 
जब मैं नहीं रहूँगा
और नहीं रहेंगे
तरु के ये झूलते मुँडेर।

- सर्वेश कुमार मिश्रा

भरथरा (लोहता), वाराणसी
उत्तर प्रदेश-२२११०७ 
मोबाइल - ०८१२-७७७७-४७७ 


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