Monday 25 March 2019

देव वंश दुबे की ग़ज़लें

छत्तीसगढ़ के पुख़्ता शायर श्री देववंश दुबे की ग़ज़लें लम्बे समय से फ़ेसबुक 
पर पढ़ता रहा हूँ और उन्हें सराहता रहा अभी हाल में मेरे आग्रह पर उन्हों ने 
अपनी कुछ ग़ज़लें मेरे पास भेजने की कृपा की तो उन्हें आप भी पढ़ें  

(1)

रंग   उड़ने   लगे    गुलाबों  के
ढल गए दिन हसीन ख़्वाबों के

देखकर कज अदाई दुनिया की
लोग   आदी   हुए   हिजाबों  के

ये चमन मुस्कुराए जाने कब
ज़र्द   पत्ते    हुए   गुलाबों  के

जिनमें लिक्खी है प्यार की भाषा
हर्फ़   ज़िंदा  हैं  उन   किताबों  के

क्या   कहेंगे    मियाँ   सफ़ाई  में
जब कभी आये दिन हिसाबों के

(2)

राहे-हक़  में ये ख़ार-सा  क्या है
ये करम है तो फिर सज़ा क्या है

इसलिए   ही   लुटा-पिटा   है  तू
तूने हक़  के लिए  किया  क्या है

हर्फ़  क्यों  ज़िंदगी  के  उलझे  हैं
तूने अब तक पढ़ा-लिखा क्या है

जो  मुक़र्रर  ही   हो  गया  पहले
फैसला  वो  भी  फैसला क्या  है

हम  कहाँ  शाद हैं मियाँ  खुद  से
क्या कहें दिल का माजरा क्या है

ज़िंदगी   ख़ूब  कट  रही  है  यहाँ
उसकी रहमत है तो बला क्या है

(3)

रौशनी...फैला..रहा..हूँ
दीप..होता   जा   रहा  हूँ

ज़िंदगी...जद्दोजहद...है
इसमें  ही  उलझा  रहा हूँ

प्यास की कब चलने दीहै
मैं   जहाँ  दरिया   रहा  हूँ

पाँव  से  दबकर भी  जैसे
घास   हूँ, बढ़ता  रहा  हूँ

तोड़कर  काँटों  का  घेरा
फूल-सा  खिलता  रहा हूँ

(4)

ऐसा     मैंने     सावन     देखा
जिसमें प्यासा  हर  मन  देखा 

है  तो वह धनवान  बहुत पर
मन  से  उसको  निर्धन  देखा 

ग़ैर  लगा  अपना   चेहरा  ही
युग   का   ऐसा   दर्पन   देखा 

दिल में कुछ हरियाली छायी
सपनों का  जब उपवन देखा 

साँपों का डर निकला मन से
जब  से  इंसां  का  फन देखा 

बाँट  रहा  है  खुशबू  सबको
ऐसा     दानी    चंदन    देखा 

(5)

कैसे  कह  दूँ  कि  वो पराया है
साथ उसने ही बस निभाया है

एक-सा   तेरा   मेरा  साया  है
कैसी क़ुदरत है,कैसी माया है

मैं  ख़यालों में  डूबा  रहता  हूँ
जिसने खोया है उसने पाया है

वो इबादत का राज़ क्या जाने
अधखिला फूल तोड़  लाया है

मैं लकीरों का कब फ़क़ीर रहा
मुझमें  हर   रास्ता  समाया  है

है वो  परवरदिगार  दुनिया का
मैंने सर जिसके दर झुकाया है



संक्षिप्त परिचय 

@देववंश दुबे/mob-78790 76271

सीनियर .श्रे. शिक्षक, होली क्रॉस कॉ..मा.विद्यालय,अम्बिकापुर

विधा-कहानी,लघुकथा,ग़ज़ल

मूल निवास-कोल्हुआ खुर्द,पोस्ट-पूर्वडीहा, पलामू,झारखंड

वर्तमान निवास-किसान  राइस  मिल के पीछे,कृष्ण नगर,नमना कला,
अम्बिकापुर-497001,छत्तीसगढ़


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1 comment:

  1. लाजवाब गजलें ...
    सभी एक से बढ़ कर एक ... जुदा अंदाज़ ...

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