1 चाह
बड़े बड़े फ़लसफ़े मुझसे कहे नहीं जाते
दर्शन और उपदेश मुझसे सहे नहीं जाते
मुझे तो ज़िन्दगी 'कनुप्रिया ' में दिखती है
संदेशे की बात 'मेघदूत की जंचती है
मेरे लिए इंसान 'गुनाहों का देवता ' है
'आषाढ़ का एक दिन 'ही सारा सिलसिला है
प्यार के जो रूप समझाये हैँ
' जिब्रान ' ने
वही तो बरसों पहले फरमाए हैँ
' कुरआन ' में
'रामायण ' के आदर्श और 'गीता ' का सार
सब हैँ मेरे अंग संग पर जीवन
है निस्सार
मुझे तो हैँ दरकार
बस ढाई आखर
तेरे
तुझसे
क्योंकि बड़े बड़े फ़लसफ़े मुझसे कहे नहीं जाते - - -
2 ऐ ज़िन्दगी
तुझे पलकों पे बिठाया ऐ ज़िन्दगी
तुझे दुल्हन सी सजाया मैंने
तेरी झोली भरी ख्वाबों से मैंने
तूने आँखों में ही रड़का दिए ऐ ज़िन्दगी
फिर भी ऐसा क्यों है ऐ ज़िन्दगी
कि मेरे आँचल के सारे शूल
फूल बनके खिलते हैँ
दुलार इकरार मनुहार दे
मेरे दिल को छू निकलते हैँ
ये संस्कार हैँ या विश्वास
या पल्ला ना छोड़ती आस
या तेरा ही दूजा नाम है ऐ ज़िन्दगी
प्यार प्यार बस प्यार
आ प्यार तुझे लगा लूं गले इक बार
और फिर से संदली हो जाऊं
3 बस यूँ ही
किस सोच में डूबे हो सजनी के साजन
गुदगुदा के चौंकाया
बस यूँ ही
प्रीत में तेरी खोयी मैं कान्हा
अचानक तुझसे मलाल कर बैठी
बस यूँ ही
खनकती हंसी में वो रंगीन मस्ती
सहसा आँख डबडबा आयी
बस यूँ ही
शौक़ से नग़मे गा रही थी ज़िन्दगी
तभी याद आ गई वो ग़ज़ल पुरानी
बस यूँ ही।
4
ये दिल बड़ा अजीब है क्या मांग रहा है
हथेलियों में चाँद लेके जांच रहा है जो
आंखों की बेखयाली में ये कैसी दीवानगी
बेसाख्ता ही इनमे कोई झाँक रहा है
ये किसने राग छेड़ा है मेरे नसीब का
पैबंद मुफ़लिसी का मुँह ढांप रहा है
चाहूँ कि तोड़ लाऊँ तारे ज़मीं पे सारे
बूढ़ी हुई उम्मीद से कोई बाँच रहा है
मुँह फेर लें जी करता है जहाने फ़ानी से हम
सिसकियों में किसका ये सुर काँप रहा है
बेहतर है डूब जा तू समंदर में इश्क़ के
ऐ बेमुरव्वत किसकी मोहब्बत तू आंक रहा है
5 तो कैसे
एक मिसरे से ग़ज़ल हो कैसे
स्वप्निल कविता
नाजुक कहानी
ले उड़ी
आंधी दीवानी
बात सूझे तो कैसे
महकी लहकी
डाली डाली
ओस पड़ी
कुम्हला मुरझाई
फूल खिले तो कैसे
सूनी पगडण्डी
पथरीले रास्ते
तपती धरती
बरसे शोले
पाँव बढ़ें तो कैसे
आँचल भीगा
ममता सिसके
गोदी सूनी
मीलों दूरी
कोई लौटा लाये तो कैसे
एक मिसरे से ग़ज़ल हो कैसे ।
6 तू कहां
ज़रा बता दे मुझे
मैं बहुत हूँ मुश्किल में
तू मेरी आँख के तिल में है
या मेरे दिल में
रह रह के पूछती हूँ
मुड़ मुड़ के देखती हूँ
आईने में ढूंढती हूँ
सच बता दे ना
तू मेरी आँख के तिल में है
या मेरे दिल में
नींदों में मेरी सपने
सपने में ख्वाब तेरे थे
अनचीन्हे पकड़ से दूर
अब तो बता ना
तू मेरी आँख के तिल में है
या मेरे दिल में थे
वो आसमानी चूनर
चूनर से झाँका चाँद
लपक लूँ अपने अंक में
सच बता दे ना
तू मेरी आँख के तिल में है
या मेरे दिल में है ।
बड़े बड़े फ़लसफ़े मुझसे कहे नहीं जाते
दर्शन और उपदेश मुझसे सहे नहीं जाते
मुझे तो ज़िन्दगी 'कनुप्रिया ' में दिखती है
संदेशे की बात 'मेघदूत की जंचती है
मेरे लिए इंसान 'गुनाहों का देवता ' है
'आषाढ़ का एक दिन 'ही सारा सिलसिला है
प्यार के जो रूप समझाये हैँ
' जिब्रान ' ने
वही तो बरसों पहले फरमाए हैँ
' कुरआन ' में
'रामायण ' के आदर्श और 'गीता ' का सार
सब हैँ मेरे अंग संग पर जीवन
है निस्सार
मुझे तो हैँ दरकार
बस ढाई आखर
तेरे
तुझसे
क्योंकि बड़े बड़े फ़लसफ़े मुझसे कहे नहीं जाते - - -
2 ऐ ज़िन्दगी
तुझे पलकों पे बिठाया ऐ ज़िन्दगी
तुझे दुल्हन सी सजाया मैंने
तेरी झोली भरी ख्वाबों से मैंने
तूने आँखों में ही रड़का दिए ऐ ज़िन्दगी
फिर भी ऐसा क्यों है ऐ ज़िन्दगी
कि मेरे आँचल के सारे शूल
फूल बनके खिलते हैँ
दुलार इकरार मनुहार दे
मेरे दिल को छू निकलते हैँ
ये संस्कार हैँ या विश्वास
या पल्ला ना छोड़ती आस
या तेरा ही दूजा नाम है ऐ ज़िन्दगी
प्यार प्यार बस प्यार
आ प्यार तुझे लगा लूं गले इक बार
और फिर से संदली हो जाऊं
3 बस यूँ ही
किस सोच में डूबे हो सजनी के साजन
गुदगुदा के चौंकाया
बस यूँ ही
प्रीत में तेरी खोयी मैं कान्हा
अचानक तुझसे मलाल कर बैठी
बस यूँ ही
खनकती हंसी में वो रंगीन मस्ती
सहसा आँख डबडबा आयी
बस यूँ ही
शौक़ से नग़मे गा रही थी ज़िन्दगी
तभी याद आ गई वो ग़ज़ल पुरानी
बस यूँ ही।
4
ये दिल बड़ा अजीब है क्या मांग रहा है
हथेलियों में चाँद लेके जांच रहा है जो
आंखों की बेखयाली में ये कैसी दीवानगी
बेसाख्ता ही इनमे कोई झाँक रहा है
ये किसने राग छेड़ा है मेरे नसीब का
पैबंद मुफ़लिसी का मुँह ढांप रहा है
चाहूँ कि तोड़ लाऊँ तारे ज़मीं पे सारे
बूढ़ी हुई उम्मीद से कोई बाँच रहा है
मुँह फेर लें जी करता है जहाने फ़ानी से हम
सिसकियों में किसका ये सुर काँप रहा है
बेहतर है डूब जा तू समंदर में इश्क़ के
ऐ बेमुरव्वत किसकी मोहब्बत तू आंक रहा है
5 तो कैसे
एक मिसरे से ग़ज़ल हो कैसे
स्वप्निल कविता
नाजुक कहानी
ले उड़ी
आंधी दीवानी
बात सूझे तो कैसे
महकी लहकी
डाली डाली
ओस पड़ी
कुम्हला मुरझाई
फूल खिले तो कैसे
सूनी पगडण्डी
पथरीले रास्ते
तपती धरती
बरसे शोले
पाँव बढ़ें तो कैसे
आँचल भीगा
ममता सिसके
गोदी सूनी
मीलों दूरी
कोई लौटा लाये तो कैसे
एक मिसरे से ग़ज़ल हो कैसे ।
6 तू कहां
ज़रा बता दे मुझे
मैं बहुत हूँ मुश्किल में
तू मेरी आँख के तिल में है
या मेरे दिल में
रह रह के पूछती हूँ
मुड़ मुड़ के देखती हूँ
आईने में ढूंढती हूँ
सच बता दे ना
तू मेरी आँख के तिल में है
या मेरे दिल में
नींदों में मेरी सपने
सपने में ख्वाब तेरे थे
अनचीन्हे पकड़ से दूर
अब तो बता ना
तू मेरी आँख के तिल में है
या मेरे दिल में थे
वो आसमानी चूनर
चूनर से झाँका चाँद
लपक लूँ अपने अंक में
सच बता दे ना
तू मेरी आँख के तिल में है
या मेरे दिल में है ।
पंजाब की हिन्दी और पंजाबी कवयित्री डा रश्मि खुराना की कुछ हिन्दी कविताएँ पाठकों के लिए यहाँ प्रस्तुत की
ReplyDeleteगई हैं । ये लम्बे समय तक आकाश वाणी दिल्ली में सहायक निर्देशक तक काम करने के बाद जालन्धर में रहती हैं । आजकल लन्दन में हैं ।
इन की दो दर्जन से अधिक पुस्तकें हिन्दी में छप चुकी हैं , कुछ पंजाबी में भी छपी हैं ।