Monday, 10 December 2012

दोहे

    दोहे

अपनी छोटी बात भी  लाख टके की बात
दूजा सच्ची बात कह  खाये शठ की लात ।
    कीकर काँटा जल उठा  जब देखा जलजात
    खिला पात जो पास में   करे घात पर घात ।
मति नीची करनी अधम   ओछी उस की बात
ऊँची डाली का सुमन    करे गगन से बात  ।
    कितने पानी में  खड़ा   मानव या जलजात
    उस पल हो जाता प़कट  चलती है जब बात ।
कभी बड़ा मालिक रहा   सब थे तेरे दास
बहुत मलाई खा चुका   अब तो रख उपवास ।
    यह बौना गोरखपुरी   वह बलिया का जाट
    सब हिन्दी को चर रहे  क्या बांभन क्या जाट ।
यह चाचा गोरखपुरी  वह बनारसी बाप
संसद में इंग्लिश बकैै   बाहर  हिन्दी जाप । । 
     दिल्ली या परदेश में   हिन्दी की जय बोल
     गंगाजल में पर कभी  लेना व्हिस्की  घोल ।
दुर्घटना को देख कर  सभ्य नागरिक मौन 
पड़े पुलिस के फेर में   वक़्त गँवाए  कौन  ।
     अपने अपने लाभ में सब इतने तल्लीन 
     ज्यों पोखर में मेंढकी   ज्यों नदिया में मीन ।
लिख लिख काग़ज़ रख दिये पढ़ने वाला  कौन 
जो पढ़ते सब बुद्धि जन सब ने रक्खा मौन  ।
      लिख लिंख काग़ज़ धर गए कवि पुंंगव उर चीर 
      चिता राख बन उड़ेंगे  यमुना गंगा तीर  ।
धन बल पशुबल से यहाँ  लो सारा जग जीत
सब कुछ मिल जाए मगर   मिले न मन का मीत ।
        सभी दौड़ते दौड़ में  सब कुछ पीछे छोड़ 
         निकलेंगे पर अन्त में  सब के सब रणछोड़ ।
--सुधेश 

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