अपनी छोटी बात भी लाख टके की बात
दूजा सच्ची बात कह खाये शठ की लात ।
कीकर काँटा जल उठा जब देखा जलजात
खिला पात जो पास में करे घात पर घात ।
मति नीची करनी अधम ओछी उस की बात
ऊँची डाली का सुमन करे गगन से बात ।
कितने पानी में खड़ा मानव या जलजात
उस पल हो जाता प़कट चलती है जब बात ।
कभी बड़ा मालिक रहा सब थे तेरे दास
बहुत मलाई खा चुका अब तो रख उपवास ।
यह बौना गोरखपुरी वह बलिया का जाट
सब हिन्दी को चर रहे क्या बांभन क्या जाट ।
यह चाचा गोरखपुरी वह बनारसी बाप
संसद में इंग्लिश बकैै बाहर हिन्दी जाप । ।
दिल्ली या परदेश में हिन्दी की जय बोल
गंगाजल में पर कभी लेना व्हिस्की घोल ।
दुर्घटना को देख कर सभ्य नागरिक मौन
पड़े पुलिस के फेर में वक़्त गँवाए कौन ।
अपने अपने लाभ में सब इतने तल्लीन
ज्यों पोखर में मेंढकी ज्यों नदिया में मीन ।
लिख लिख काग़ज़ रख दिये पढ़ने वाला कौन
जो पढ़ते सब बुद्धि जन सब ने रक्खा मौन ।
लिख लिंख काग़ज़ धर गए कवि पुंंगव उर चीर
चिता राख बन उड़ेंगे यमुना गंगा तीर ।
धन बल पशुबल से यहाँ लो सारा जग जीत
सब कुछ मिल जाए मगर मिले न मन का मीत ।
सभी दौड़ते दौड़ में सब कुछ पीछे छोड़
निकलेंगे पर अन्त में सब के सब रणछोड़ ।
--सुधेश
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