मुक्तक
जिन को भोजन के लाले हैं
जिन्हें ग़रीबी ने पाले हैं
वे ही दुनिया को चला रहे
जिन के पाँवों में छालें हैं ।
दुनिया में द्वन्द्व विवाद है
वह युद्धों से बर्बाद है
बस प्यार जहाँ मेहमान है
दिल की बस्ती आबाद है ।
दिल का दिल से संवाद है
यह वाद नहीं न विवाद है
इस घायल दिल में दर्द जो
कविता ंउस का अनुवाद है ।
आज कल क्या कहें रिश्तों से
अर्थ में तब्दील रिश्तों से
आदमीयत की चमक ग़ायब
शक्ल से दिखते फ़रिश्तों से ।,
मर मिटे जो काम करते वही भूखे हैं
धूप में जलते रहे जो वही सूखे हैं
पेट की जो भूख है सब को सताती है
पेट जिन के ंभरे धन के वही भूखे हैं ।
जो होता करने से होता
ख़ाली बातों से क्या होता
चींटी तो चढ़ गई हिमालय
हांथी पड़ा पड़ा पर सोता ।
--सुधेश
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