छाया
ज्यों ज्यों सूर्य चढ़ता
गगन के विस्तार में
वृक्ष छायाएँ
सिकुड़ती जा रही हैं
मध्याह्न में
लम्बे से लम्बे पेड़ की छाया
बौनी हुई
जैसे ज्ञान के आलोक में
मानव का अहम्
लुप्त होता ।
मन का ख़ालीपन
पेट भर जाता है
मासिक वेतन दोस्त की मदद
महाजन के उधार से
पर पेट आख़िरी सत्य नहीं
शरीर में मन बुद्धि आत्मा भी है ।
बुद्धि लीन है अहंकार में
आत्मा अपने परमात्मा में
मन का ख़ालीपन कौन भरे
वह भरता है प्यार से ।
-------सुधेश