Wednesday, 12 December 2012

कुछ कविताएँ

                    छाया

  ज्यों ज्यों सूर्य चढ़ता
   गगन के विस्तार में 
   वृक्ष छायाएँ 
   सिकुड़ती जा रही हैं 
   मध्याह्न  में 
   लम्बे से लम्बे पेड़ की छाया 
   बौनी हुई
   जैसे ज्ञान के आलोक में 
    मानव का अहम्
   लुप्त होता ।
    
          मन का ख़ालीपन 

   पेट भर जाता है 
   मासिक वेतन दोस्त की मदद 
   महाजन के उधार से
    पर पेट आख़िरी सत्य नहीं 
    शरीर में मन बुद्धि आत्मा भी है ।
          बुद्धि लीन है अहंकार में 
           आत्मा अपने परमात्मा में 
             मन का ख़ालीपन कौन भरे 
            वह भरता है प्यार से ।
    
 -------सुधेश 

चण्डीगढ़ की हिन्दी कवयित्री श्रीमती अलका कांसरा की कुछ कविताएँ

Hindi poems /    Alka kansra / Chandi Garh Punjab    चण्डीगढ़   गढ़     में   रसायन   शास्त्र   की   प्रोफ़ेसर   श्रीमती   अलका   कांसरा   ह...