कुछ और लघु कथाएँ
नियति
मल्होत्रा साहब की विदेशी कार सड़क पर मक्खन पर छुरी की तरह दौड़ रही थी कि
अचानक उन्हें ब़ेक मारना पड़ा । सामने से भाग कर निकलता हुआ वो नांक पूँछता
बच्चा बाल बाल बच गया ।
"" कुत्ते का बच्चा " सिगार झाड़ते हुए मल्होत्रा साहब के मुँह से गाली निकली ।
अपने क़ीमती वक़्त को घड़ी में झाँकने के बाद उन्होंने अपनी विदेशी कार मेन रोड
पर मोड़ दी ।
" भड़ाक " उफ़ , मल्होत्रा साहब की विदेशी कार को वो ट्रक कई मीटर तक घसीटता
ले गया । मल्होत्रा साहब की विदेशी कार को क्षतविक्षत देख कर दर्शकों में से कोई
कह रहा था " साला कुत्ते की मौत मारा गया " ।
दृष्टिकोण
समय धरती के मुआयने पर निकला था । रास्ते में एक जोड़ा पास से गुज़रा ।
"हमारी शादी को चार साल हो गये हैं , पर ऐसा लगता है जैसे कल ही हुई हो ।
है ना " ।
सुन कर अजीब सा लगा । ख़ैर , वह आगे बढ़ गया और ख़ैराती हस्पताल में घुस
गया । बिस्तर पर पड़ी एक ज़िन्दा लाश के पास से गुज़र रहा था कि मुँह से एक
अस्फुट स्वर सुनाई दिया --" एक एक पल एक साल लगता है ।अब तो मुक्ति
दे ऊपर वाले ।"
समय को अपनी निरन्तर गति पर भ़म होने लगा था । तभी सर्र से एक ट़क
बराबर से गुज़र गया । कहीं बहुत दूर एक बस धीरे धीरे चलती सी दिखाई पड़
रही थी ।
समय भी वापस चल पड़ा क्योंकि दृष्टिकोणों का अन्तर उसे समझ मे आने लगा
था ।
बीच का अन्तर
" पापा ,मैं आज स्कूल नहीं जाऊँगा ।आज सिनेमा ले कर चलो । " मुन्नू ज़िद कर रहा
था । दस पन्द्रह मिनट की हुज्जत के बाद महेन्द़ बाबू झल्ला कर बोल उठे
" तुम्हें स्कूल नहीं जाना है तो मरो यहीं पर । मुझे दफ़्तर के लिए तैयार होने दो ।"
"पापा , दफ़्तर क्यों जाते हो ।"
" वहाँ पैसे मिलते हैं । स्कूल में देने पड़ते हैं ।"
अपने पापा की झल्लाहट के बाद भी सुबकता हुआ मुन्नू स्कूल और दफ़्तर के बीच
का अन्तर नहीं समझ पाया ।
बात बढ़ गई
टैंकर के पास बाल्टियां लिये लोग आपस में लड़ रहे थे ।जब मुन्ना से नहीं रहा गया
तो वह पूछ ही बैठा - " पापा , ये लोग लड़ क्यों रहे हैं ।"
" बेटे , पानी के ऊपर " पापा का जवाब था ।
और कुछ दिनों बाद रेडियो पर मुन्ना को सुनाई दिया " पानी को ले कर हरियाणा
और पंजाब में लड़ाई ।"
और वह फिर पूछ बैठा " पापा , ये हरियाणा और पंजाब कहाँ रहते हैं ।"
आख़िर क्यों न पूछे , बात इतनी बढ़ जो गई थी ।
आलोचना
नए ज़माने के कम्प्यूटर भी कविताएँ लिखने लगे हैं ।ज़रूरत सिर्फ विचारों भरा गद्य
फ़ीड करने की रह गई है । और छपने के बाद जब कविता बाहर निकल कर आई तो
एक ने कहा " यह तो नयी कविता है ।" ।
दूसरा बोला " अरे कहाँ , यह तो कोरा का कोरा गद्य है ।"
तीसरा चहका " अरे नहीं भाई , यह तो कम्प्यूटर कविता है " ।
अन्ततः: तीसरे द्वारा की गई आलोचना सब को नई लगी और पसन्द आई ।
इन लघु कथाओं के लेखक संजय शर्मा सुधेश हैं , जो अमेरिका में रहते हैं । उन का नाम
ReplyDeleteऊपर छपने से रह गया था ।
.सराहनीय अभिव्यक्ति आभार अकलमंद ऐसे दुनिया में तबाही करते हैं . आप भी जानें हमारे संविधान के अनुसार कैग [विनोद राय] मुख्य निर्वाचन आयुक्त [टी.एन.शेषन] नहीं हो सकते
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