मेरे गीत निराश न होना
मेरे गीत निराश न होना
रहना जुड़ कर ही ज़मीन से
ऊर्ध्वमूल आकाश न होना ।
माना यान्त्रिक जटिल समय है
घोर अभावुकता अतिशय है
मेधा हावी , पर मनुष्य का
अब भी भावों भरा हृदय है ।
तू संलग्न सृजन से रहना
रचना का अवकाश न होना ।
अधुनातनता को बहने दे
वैज्ञानिकता को कहने दे
बस मनुष्य मन का संवेदन
आदिम राग बना रहने दे ।
अप़़तिहत रह आघातों से
रचना विमुख अभाष न होना ।
मन यन्त्रों का दास नहीं हो
कुण्ठा का आवास नहीं हो
रह स्वतन्त्र संज्ञा तू सुख की
दुख का द्वन्द्व समास नहीं हो ।
पाटल ही बनना गन्धायित
तू निर्गन्ध पलाश न होना ।
लास्य लगाव नहीं बदलेगा
मूल स्वभाव नहीं बदलेगा
बदले भले विचार बुद्धि , पर
मौलिक भाव नहीं बदलेगा ।
पलने की डोरी बनना तू
महा मृत्यु का पाश न होना ।
-- चन्द़ सेन विराट
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