बेरी के कच्चे बेर
मेरी बेरी के कच्चे बेर न तोड़ो
इन्हें धूप में और अभी कुछ पकने दो ।
बेमौसम कीकर या बेर नहीं खिलता
बरजोरी में शीश उठा काँटा मिलता
कच्चे कच्चे बेर अभी तो बच्चे हैं
इन को यौवन की गरमी में तपने दो ।
बेरी खिली अकेली जंगल जंगल में
मंगल ही मंगल है देखो जंगल में
क्वारे हाथ न पकड़ो कोमल किसलय के
रेखाएँ सतरंगी और उभरने दो ।
बेर नहीं हैं ये तो मद के प्याले हैं
मधु के कोष इन्हीं में घुलने वाले हैं
ठहरो ठहरो ऐसी भी क्या जल्दी है
नव यौवन के रंग में इन्हें सँवरने दो ।
मेरी बेरी के कच्चे बेर ........।
पत्ते पत्ते पर शबनम
पत्ते पत्ते पर शबनम है
कली कली की आँखें नम हैं
क्या कोई खुल कर रोया है रात मे ?
भीगी भीगी सुबह सुहानी
पल में शबनम उड़ जाएगी
कलियों के घूँघट में ख़ुश्बू
पवन हिंडोले चढ जाएगी ।
दिन का नाम दूसरा हलचल
बहरा कर देगा कोलाहल
ऐसे में क्या रक्खा है बात में !
बाहर काला धुँआ धुँआ है
कैसी जलन सिन्धु के तल में
सारा दिन तपता रहता है
आग छिपी सूरज के दिल में ।
घटा घटा छाई मस्ती है
बिजली भी चम चम हंसती है
लेकिन क्यों बादल रोया बरसात में?
संझा की आहट पर आख़िर
दिन के यौवन को ढलना है
स्नेह न हो दीपक में फिर भी
जीवन बाती को जलना है ।
जुगनू राह दिखाने आये
झंीगुर ने भी गीत सुनाए
चन्दा ग़ायब तारों की बारात में ।
-- सुधेश
सुंदर भाव।
ReplyDeleteबधाई।
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