कुछ और ग़ज़लें
कहनी जो तुम से बात अकेले में
मुझ से होगी वह बात न मेले में ।
यह लाखों का मौसम है सावन का
कैसे इस को तोलूं मैं धेले में ?
दुनिया बाज़ार हुई सच है फिर भी
यह प्यार कहाँ बिकता है ठेले में ?
रक्तिम कपोल तेरे यह कहते हैं
अंधरों ने छापी बात अकेले में ।
सब सुन लें कैसे ऐसी ग़ज़ल कहूँ
जग के गूँगे बहरों के मेले में ।
दुख की बदली बिना कहे छा जाती है
पर चन्दा की कोर चमक मुस्काती है ।
सुधा वर्षिणी शुभ़ चाँदनी खिली हुई
क्यों वियोग ज्वाला सी मुझे जलाती है ।
ठूँठ नहीं खिल पाता सौ मधुमासों में
मरघट के पेड़ों पर कोयल गाती है ।
मेरे रोगों की तो कोई दवा नहीं
मन खिलता जब तेरी चिट्ठी आती है ।
तुम आये सारे दुखड़े काफ़ूर हुए
जाने पर क्यों याद तुम्हारी आती है ।
जन्म दिवस या मरण दिवस हो गांधी का
दुनिया बस छुट्टी की ख़ुशी मनाती है ।
जीवन नाम जागने सोने भर का है
ज़िन्दगी जगाती बस मौत सुलाती है ।
--सुधेश
-
Kya baat hai...........Very Nice
ReplyDeletesundar atisundar ,badhai
ReplyDelete