मेरे ताज़ा दोहे
राजा घर बेटा हुआ तो वह राजकुमार
बेटी जन्मी ़, चाहिये उस को राजकुमार ।
ऐसे राजकुमार अब जिन के पास न शक्ल
शक्ल छोड़िये अगर हो थोड़ी सी भी अक़्ल ।
चाँद चाहिये दिवस में इतनी ऊंची चाह
चमचे भी तैयार हैं कहें वाह जी वाह ।
पढ़ विदेश से आ गये पढ़ा न एको पाठ
मगर देखते ही बने उन के ठाठम ठाठ ।
एक योग्यता बस यही वे रानी के लाल
राजनीति के घाघ को कर दें चट्ट हलाल ।
दलदल धनबल साथ लें जिधर चलें जयकार
जनता सड़कों पर खड़ी करती हाहाकार ।
भैया यह जनतन्त्र है धनवालों का खेल
तन्त्र शेष पर जन कहाँ उस की छूटी रेल ।
उस का कुछ बिगड़े नहीं गिनो गिनाओ खोट
भ़ष्टाचारी हो बड़ा दिलवाएगा वोट ।
गधे पंजीरी खा रहे क्यों कलपावै जीव
दाल भात को खाय कर ठण्डा पानी पीव ।
अपना ही तो राज है चले गये अंगरेज़
ये देसी अंगरेज़ पर उन से निकले तेज़ ।
नौकरशाही मस्त है बस अंगरेज़ी बोल
चाहे कितना पीट ले तू हिन्दी का ढोल ।
कुछ पहले दोहे
कल कल करते कल गया कल पाई क्या आज
कल जितना बेकल रहा उतना बेकल आज ।
कलि युग क्या कल युग यही पल पल विकल ज़हान
कल कल करते दिन गया अविकल विकल विहान ।
कल युग पटरी पर सदा दौड़ी जीवन रेल
हंस लो मिल रोओ बिछुड़ कुछ घंटों का ंखेल ।
यह बौना गोरखपुरी यह बलिया का जाट
सब हिन्दी को चर रहे क्या बांभन क्या जाट ।
यह चाचा गोरखपुरी यह बनारसी बाप
संसद में इंग्लिश बकै बाहर हिन्दी जाप ।
दिल्ली या परदेश में हिन्दी की जय बोल
गंगा जल में पर कभी लेता व्हिस्की घोल । ।
जीवन ख़ाली कुम्भ सा सूखा सारा नीर
जर्जर डाली पर िटका सूखा पात शरीर ।
यौवन मद में मस्त हो जर्जर ज़रा न भूल
ज़रा पवन आ एक दिन झाड़ेगा सब धूल ।
अपनी सुषमा गन्ध पर चाहे जितना फूल
माली आ ले जाएगा खिले ंअधखिले फूल ।
रात गई दिन आ गया दिन बीता फिर शाम
कोल्हू में चलता रहा पहुँचा किसी न धाम ।
--सुधेश
३१४ सरल अपार्टमैैंट्स , द्वारिका सैैक्टर १० नई दिल्ली ११००७५
फ़ोन ०९३५०९७४१२० ई मेल drsudhesh@gmail.com
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