Wednesday, 13 November 2013

रोचक प़संग

रोचक प़संग

करुण  रस की उपस्थिति

एक बार यूनिवर्सिटी में वाइल्डलाइफ़  लेने आए आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी। वाइवा में एक लड़की से उन्हों ने करुण रस के बारे में पूछ लिया। लड़की छूटते ही जवाब देने के बजाय रो पडी। बाद में जब वाइवा की मार्कशीट बनी तब आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने उस रो पडने वाली लड़की को सर्वाधिक नंबर दिया। लोगों ने पूछा कि, 'यह क्या? इस लड़की ने तो कुछ बताया भी नहीं था। तब भी आप उसे सब से अधिक नंबर दे रहे हैं?' हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कहा, 'अरे सब कुछ तो उस ने बता दिया था, करुण रस के बारे में मैंने पूछा था और उस ने सहज ही करुण उपस्थित कर दिया। और अब क्या चाहिए था?' लोग चुप हो गए थे। (मित्र लेखक श्री दयानंद पांडेय के सौजन्य से www.facebook.com/dayanand.pandey.311)

-- जय प़काश मानस

'कई चांद थे सरे आसमां'’,  यह है उर्दू के मशहूर साहित्यकार पद्मश्री, सितारा-ए-इम्तियाज़ शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी का सुप्रसिद्ध उपन्यास। 2010 में जब यह रचना आई तो इसने साहित्यिक-दुनिया में तहलका मचा दिया था। आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी ने इसे वर्ष की श्रेष्ठ उपलब्धि में गिनाया था। गोपाल प्रधान ने ‘समालोचन’ में इसकी बड़ी अच्छी समीक्षा की थी। कथाकार इंतज़ार हुसैन ने कहा था, “मुद्दतों बाद उर्दू में एक ऐसा उपन्यास आया है, जिसने हिंदो – पाक की अदबी दुनिया में हलचल मचा दी है. क्या इसका मुकाबला उस हलचल से किया जाय जो ‘उमराव जान अदा’ ने अपने वक्त में पैदा की थी. शम्सुर्रहमान फारुकी उपन्यासकार के रूप में खुद को सामने लाए हैं. और शोधकर्ता फारुकी यहाँ पर उपन्यासकार फारुकी को पूरी-पूरी कुमक पहुंचा रहा है. ”
और आज मुझे यह किताब कॉलेज स्ट्रीट में एक पटरीनुमा दूकान से कौड़ियों के दाम में मिली... —

-- जय कौशल
( हिन्दी विभाग , केन्द्रीय विश्वविद्यालय , त्रिपुरा )


 मदन मोहन मालवीय उर्फ़ फक्कड़ सिंह

आज महामना मालवीय जी की याद करता हूँ ( जिन जन्म २५ दिसम्बर सन १८६१ ई को हुआ था ) । उन पर मैंने पंडित मदनमोहन मालवीय शीर्षक से यह पुस्तक लिखी थी जिसे लक्ष्मी प्रकाशन जी 30/बी ( जिन का जन्म गली नम्बर 4 गंगा विहार दिल्ली ने सन २०१० ई प्रकाशित लिया था। पुस्तक का मूल्य 200 रुपये है।मालवीय जी ने फक्कड सिंह उपनाम से कविताएँ लिखी थीं। पेश है उनकी यह कविता जिसमें उन्होंने नव अंग्रेजियत के शिकार लोगों पर पैना व्यंग्य किया था
अहले यूरप पूरा जेंटलमैन कहलाता है हम।
डोंट से बाबू टु मी मिस्टर कहा जाता है हम।।
गंगा जाना पूजा जप तप छोडो ये पाखंड सब ।
घूरने में मुंह को गिरजाघर में नित जाता है हम।।
भंग गांजा चरस चंडू घर में छिप छिप पीते थे हम।
अब तो बेखटके हमेशा वाइन डकारता है हम।।
हिन्दुओं का खाना पीना हमको कुछ भाता नहीं।
बीफ चमचे से कटे होटल में जाता है हम।।
बाबू व चाचा का कहना लाइक हम करता नहीं।
पापा कहना अपने बच्चों को भी सिखलाता है हम।।

( पुनीत बिसारिया के सौजन्य से )


 एक मौंखिक परीक्षा

: "एम ए पूर्व की परीक्षा हो गई | साक्षात्कार के लिए सागर विश्वविद्यालय से डा0 रामरतन भटनागर बाह्यपरीक्षक के रूप में आए। जब मेरी बारी आई, अन्दर प्रवेश कर मैंने नमस्कार किया और अनुमति प्राप्त होने पर कुर्सी में बैठ गया। मेरी स्मृति क्षमता सदा से कमजोर रही है इसलिए ह्रदय धड़क रहा था फिर भी मैं गहरी सांस लेकर उस युद्ध में मर मिटने के लिए तत्पर हो गया।
' सुमित्रानंदन पन्त को पढ़ा है न '? बाह्य परीक्षक ने प्रश्न किया।
' जी '। मेरा उत्तर था।
' उनकी चार कविताओं के शीर्षक बताइए ' ?
' सर, ...याद नहीं '।
' अच्छा चलो, उनकी कोई एक कविता सुना दो '।
' वो....सर वो....अभी याद नहीं आ रही है, भूल गया सर....'।
' आधुनिक हिंदी साहित्य में किन लेखकों को आपने पढ़ा और किससे सर्वाधिक प्रभावित हुए ' ?
' ऊँ....सर '।
' भई कुछ तो बताओ, अच्छा ये बताइए कि तुलसीदास और सुमित्रानंदन पन्त की कविताओं में क्या अंतर समझ में आया '?
' कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली सर ? अब आप देखिए, मैं एम ए का छात्र हूँ और मुझे पंतजी की कविताओं के शीर्षक तक याद नहीं हैं और तुलसीदास ? तुलसीदासजी जन-जन के कवि थे, उनकी रामचरित मानस भारत के घर-घर में पाई जाती है। इन दोनों में कैसी तुलना '? मैंने उनसे ही प्रतिप्रश्न किया।
' आप जा सकते हैं '। उन्होंने अति प्रसन्न भाव से कहा।
पांच मिनट के उस साक्षात्कार में परीक्षक ने मुझे 100 में से 76 अंक दिए। यह पढ़कर आपको लग रहा होगा कि जरूर कोई 'सेटिंग' हुई होगी, या मैं गप्प हांक रहा हूँ। जी नहीं, केवल यह हुआ था कि साक्षात्कार के लिए जाने के पूर्व मुझे पता लग गया था कि माननीय डा0 रामरतन भटनागर ने तुलसीदास पर रिसर्च की है। "

-- द्वारिका प़साद अग़वाल
( राय पुर , छत्तीसगढ़ )

2 comments:

  1. वाकई रोचक प्रसंग हैं।

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