मेरे नये मुक्तक
प़ात: उठ कर ख़ुदा बन्दगी
दिन भर करते रोज़ गन्दगी
यों ही उम़़ बीत जाएगी
कर्म जाल में फँसी ज़िन्दगी ।
बिना कर्म के शक्ति नहीं है
श्रद्धा के बिन भक्ति नहीं है
कहाँ कहाँ से मंुह फेरोगे
कर्मजाल से मुक्ति नहीं है ।
कर्म बिना कुछ शक्ति नहीं है
ज्ञान बिना कुछ भक्ति नहीं है
दुर्बल को सब और दबाते
शक्ति बिना भी मुक्ति नहीं है ।
राग बिना अनुरक्ति नहीं है
प़ेम बिना आसक्ति नहीं है
आसक्ति एक बन्धन लेकिन
ज्ञान बिना कुछ भक्ति नहीं है ।
हर कोई है प़ेम विकल
ढंूंढ रहा स्नेही सम्बल
बन्धन में सब बँधे हुए
मुक्ति एक सपना केवल ।
हम ग़म खाते हैं आँसू पीते हैं
केवल अपने ही लिए न जीते हैं
मानवता की भी पहचान हमें है
हम रिश्तों में ही मरते जीते हैं ।
सोचता ही रहा पर क्या फ़ायदा
जब न सीखा ज़िन्दगी का क़ायदा
कर्म से ही बात बनती है सदा
अन्यथा क्या सोचने का फ़ायदा ।
हानि सब की किन्तु मेरा फ़ायदा
कौन सा यह ज़िन्दगी का क़ायदा
एक दिन कहते हुए मर जाना है
हा फ़ायदा हा फ़ायदा हा फ़ायदा ।
सब को अपना क्षेत्र प़ान्त या देश लगे है प्यारा
जैसे अपनी बेटी प्यारी अपना पुत्र दुलारा
यों तो धरती पर सुन्दर देशों की कमी नहीं है
सब से सुन्दर सब से प्यारा भारत देश हमारा ।
तुम पत्थर पर खुदवा लो अपना नाम
नभ में चन्दा जैसा चमका लो नाम
समय सागर में सब कुछ बह जाएगा
केवल पानी पर लिखा मिलेगा नाम ।
-- सुधेश
तुम पत्थर पर खुदवा लो अपना नाम
ReplyDeleteनभ में चन्दा जैसा चमका लो नाम
समय सागर में सब कुछ बह जाएगा
केवल पानी पर लिखा मिलेगा नाम ।
-हमारे समय का सच यही है।
बधाई।
धन्यवाद , प़ो पाण्डेय जी । आप की नज़र मेरे मुक्तकों पर गई , यह मेरे लिए एक पुरस्कार है ।
ReplyDeleteअतुलनीय, अहो भाग्य,एस.पी.सुदेश जी हमारी तहसील देवबन्द से जुडेगे है........
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