चुने हुए शेर
वो जिसमें लौ है अंधेरे में और चमकेगा,
किसी दिए पे अँधेरा उछाल कर देखो,
तुम्हारे दिल की चुभन भी जरूर कम होगी,
किसी के पाँव से काँटा निकाल कर देखो
---कुँवर बेचैन
रंजनी कान्त शुक्ल के सौजन्य से ।
आंसू जब सम्मानित होंगे ,
मुझको याद किया जाएगा।
जहाँ प्रेम का चर्चा होगा ,
मेरा नाम लिया जाएगा ॥
-- नीरज
( अलीगढ़,)
सोच रही है कैसे आशाओं का निशेमन बनता है
मन की चिड़िया, तन के द्वारे बैठी चोंच में घास लिए ।
- रिफ़अत सरोश
था पढ़ाया मांज कर बरतन घरों में रात-दिन
हो गया बुधिया का बेटा पास तो अच्छा लगा ।
- रामदरश मिश्र
( जय प्रकाश मानस के सौजन्य से )
आज हम कितने अपने माँ बाप का दिल दुखा कर सोते हैं
पूछो हालेदिल बच्चों से जिन के माँ बाप नहीं होते हैं ।
--- शाह रुख़ ंउस्मान देहलवी
आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहीं
सामान सौ बरस का पल की खबर नहीं ।
--हैरत इलाहाबादी
( तेजेन्द्र शर्मा के सौजन्य से>)
मेरे घर में सिक रहीं हैं, रोटियां तो क्या हुआ ।
शहर भर में भुखमरी है ,क्याँ लिखूँ कैसे लिखूँ ||
कृष्ण कुमार बेदिल
( सत्य वीर त्यागी के सौजन्य से )
यकीं लाएं तो क्या लाएं, जो शक लाएं तो क्या लाएं
कि बातों से तेरी सच-झूठ का इम्कां नहीं होता
(फ़िराक़ गोरखपुरी
( ओम थानवी के सौजन्य से )
'कहने को बहुत कुछ था अगर कहने पे आते,
अपनी तो ये आदत है कि हम कुछ नहीं कहते."
राजा मेंहदी अली ख़ां
( द्वारिका प्रसाद अग्रवाल के सौजन्य से )
इरादे बाँधता हूँ, सोचता हूँ, तोड़ देता हूँ
कहीं ऐसा न हो जाए, कहीं वैसा न हो जाए ।
- हफ़ीज़ जालंधरी
( जय प्रकाश मानस के सौजन्य से )
लफ्जे उम्मीद पे कायम है ये दुनिया अब तक
वक़्त बदलेगा ये उम्मीद लगाये रखिये ।
....आदिल रशीद
ये सब अहसास सारी बेहिसी से जन्म लेते हैं,
ReplyDeleteजो होते हैं सिकंदर वो कभी रोया नहीं करते।
चलो फिरसे कोई इक ज़ख्म खाएं और सो जाएँ,
लहू के मुंजमिद अवसाफ को ढोया नहीं करते।
रंजन ज़ैदी
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन डबल ट्रबल - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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