Wednesday, 5 November 2014

एक साक्षात्कार

कुछ दिनों पहले हिन्दी के ब्लाग प्रतिलिपि ने मेरा इन्टरव्यू लिया था । उसे आप सब के लिए
यहाँ प्रस्तुत किया जा रहा है ।
---सुधेश

एक छोटा सा वार्तालाप श्री सुधेश जी के साथ / A short interview with Dr. Sudhesh




 नाम :  सुधेश

 जन्मदिवस :  ६ जून सन ईसवी १९३३

 मूलस्थान :   गाँव भलसवा ईसापुर , ज़िला सहारनपुर , उ प्र . जन्म स्थान जगाधरी , ज़िला अम्बाला ( तब का पंजाब अब हरियाणा )

शैक्षिक उपाधि : एम ए ( हिन्दी ) पीएच डी

 स्वभाव :   भावुक , महत्त्वाकांक्षी और आशावादी ।



1. सेवानिवृत्ति के बाद कहाँ रहना पसंद करेंगे (गांव/शहर) और क्यूं ?  :
 गाँव तो कब का छुट  गया । अब तो दिल्ली में ही रहना मेरी नियति है । कारण यह कि गाँव का मकान पिता जी ने क़र्ज़ चुकाने के लिए बेच दिया था ।

 2.  हॉलीवुड अथवा बॉलीवुड में से कौन सी फिल्में देखना पसंद करते हैं, नयी अथवा पुरानी ? :
 बालीवुड की पुरानी फ़िल्में विशेष पसन्द हैं , जैसे दो आँखें बारह हाथ , दो बीघा ज़मीन , भाभी , आँधी आदि । वे कलात्मक थीं और संगीतात्मक थीं । आज की फ़िल्में प्राय: फूहड़ हैं । उन का गीत  और संगीत शोर अधिक  है संगीत कम ।

 3. एक वाक्य में पिता-पुत्री सम्बंध को परिभाषित करें :
 दुनिया के सम्बन्धों में पिता और पुत्री का सम्बन्ध सब से पवित्र है । पिता अपनी पुत्री के कल्याण के लिए अपना सर्वस्व दाँव पर लगा देता है ।

 4. आपके विचार में क्या हर व्यक्ति के जीवन में किसी गुरु का होना अनिवार्य है? क्यूं अथवा क्यूं नहीं ? :
जीवन में योग्य गुरु का होना एक वरदान है , क्योंकि वह ज्ञान ही नहीं देता जीवन को सही दिशा भी देता है या दे सकता है । वैसे सब की प्रथम गुरु  माता है । मातृविहीन बालक का गुरु उस का जीवनानुभव है ।

 5. साहित्य प्रेरणा :
 मुझे साहित्य सृजन की प्रेरणा अपने अभावग्रस्त जीवन से मिली । दु:ख मुझे निराश नहीं करते थे , बल्कि संघर्ष की प्रेरणा देते थे । मेरे स्कूल के शिक्षक श्री बनवारी लाल शर्मा मेरे प्रथम प्रेरक थे । शुरु के साहित्यिक जीवन में सहारनपुर के साहित्यकार और पत्रकार कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर मेरे प्रेरक और मार्गदर्शक रहे । आगे चल कर भवानी प्रसाद मिश्र और हरिवंश राय बच्चन की कविता और उन के जीवन से मुझे प्रेरणा मिली ।

 6. पसंदीदा परिवेश :
 प्राकृतिक परिवेश में रहना पसन्द करता हूँ , जहाँ शोर न हो । मित्रों की संगति मुझे प्रिय है । मेरे  मित्रों की संख्या विशाल है । पर महानगर के जीवन में प्रकृति और मित्रों से कट सा गया हूँ ।

 7. पसंदीदा व्यंजन
: शाकाहारी व्यंजन पसन्द हैं । मांसाहार कभी नहीं लिया ।

 8. आपके लिये साहित्य की परिभाषा
: साहित्य वह लेखन है जो पाठकों को उदात्त जीवन मूल्यों का दर्शन कराये और उन में ऊपर उठने की चाह जगाये । सस्ते साहित्य या यथार्थ के नाम पर नग्नता दिखाने वाली रचनाओं को मैं साहित्य नहीं मानता । साहित्य में हित या समाजहित का  समावेश होता है ।

 9. जीवन का सबसे खुशी का पल :
 जीवन में सब से ख़ुशी का पल वह था , जब मैं पहली बार एक पी जी कालेज में लैक्चरर बना  या जब मैं  जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में लैक्चरर बना । एक शुभचिन्तक मुझे मिल का मज़दूर बनाना चाहते थे , क्योंकि मेरे पिता अभावग्रस्त थे । प्रोफ़ेसर बन कर भी मैं ख़ुश नहीं हुआ क्योंकि यह पद इतनी देर से मिला कि पाने की ख़ुशी ग़ायब हो गई ।

 10. प्रतिलिपि ......
एक सराहनीय प्रयास है , क्योंकि यह साहित्य को और साहित्यकारों को इन्टरनेट से जोड़ कर विश्व व्यापी बनाना चाहता है ।

 भाई को एक मशवरा  :
 परिवार से जुड़िये और फिर अपने समाज से जुड़ कर विश्व से जुड़िये ।

 पाठकों को एक संदेश :
 सब से पहले सामने के जीवन जगत से जुड़िये और फिर साहित्य और कलाओं से जुड़िये , क्योंकि उन के बिना मानव और पशु में अन्तर नहीं रहता ।

Published works on Pratilipi :


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