चयनित शेर
दिल तो रोता रहे और आँख से आंसू न बहे
इश्क की ऐसी रवायात ने दिल तोड़ दिया।
-- सुधीर चौधरी
( बारमेड़ ,राजस्थान )
"ये नया शहर है कुछ दोस्त बनाते रहिए ,
दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिए |"-
---बशीर बद्र
( विश्वम्भर सहाय के सौजन्य से )
झूठ में सच पल रहे हैं आजकल
खोजें सिक्के चल रहे हैं आजकल
दुश्मनों की क्या ज़रूरत है कि जब
साँप घर में पल रहे हैं आजकल।
--वेद प्रकाश वटुक
( मेरठ उ प्र ) फेसबुक से ।
थोड़ी तल्ख़ी भी तबीयत में लाज़िम है
लोग पी जाते समन्दर जो न ख़ारा होता ।
--- पूनम क़ौसर
( लुध्याना , पंजाब )
हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी
जिसको भीदेखना हो कई बार देखना..
मैदां में हार जीत तो किस्मत की बात है
टूटी है जिसके हाथ में तलवार देखना... ।
निदाा फ़ाज़ली
( स्वाति तिवारी केसौजन्य से )
मेरे होंठों पे दुआ, उसकी जुबां पर गाली
जिसके भीतर जो भरा था वही बाहर निकला ।
-- नीरज
( राजेश राज के सौजन्य से )
जब उसने पुकारा तो मैं मसरूफ़ बहुत था
अब उम्र के सैलाब को किस मुँह से बुलाऊँ ।
-- क़ान्ति मोहन शर्मा
( अनिल जनविजय के सौजन्य से )
लोग कहते हैं जिन्दा रहे तो फिर मिलेंगे,
मैं कहती हूँ मिलते रहे तो जिन्दा रहेंगे ।
-- सहरमाल सहर
( नगरहार विश्वविद्यालय जलालाबाद , अफ़ग़ानिस्तान के हिन्दी विभाग में हिन्दी
की प्राध्यापिका )
२४ जुलाई सन २०१३ को फेसबुक पर प्रकाशित ।
अपने दम पर जो जीता है, वो ही जीता है,
बाकी जीना- मरना मैं बेकार मनता हूँ ।
-- अशोक रावत
( नोएडा , ग़ाज़ियाबाद उ प्र )
हर किसी की जुबान बनती है,
बात होठों से जब निकलती है।
दिल की हसरत जवान होती है,
जैसे जैसे ये उम्र ढलती है।
--- बलवीर तन्हा
( चण्डीगढ़ , पंजाब )
Dixit Dankauri in karachi ( Pakistan )
हमनवा मान लोगे तुम
जब हमें जान लोगे तुम
जो हक़ीक़त बयां कर दूं
मुट्ठियां तान लोगे तुम ।
-दीक्षित दनकौरी
ज़िन्दगी है, कोई मज़ाक नहीं
अच्छे -अच्छों को मार देती है
- दीक्षित दनकौरी
अपनी चिट्ठी बूढ़ी माँ मुझसे लिखवाती है
जो भी मैं लिखता हूँ , कविता हो जाती है ।
- बुद्धिनाथ मिश्र
( जय प्रकाश मानस के सौजन्य से )
अपनी मर्जी से तो मजहब भी नहीं उसने चुना था,
उसका मज़हब था जो माँ बाप से ही उसने
विरासत में लिया था
अपने माँ बाप चुने कोई ये मुमकिन ही कहाँ है
मुल्क में मर्ज़ी थी उसकी , न वतन उसकी रजा से
वो तो कुल नौ ही बरस का था उसे क्यों चुनकर,
फिरकादाराना फसादात ने कल क़त्ल किया
विरासत में लिया था
अपने माँ बाप चुने कोई ये मुमकिन ही कहाँ है
मुल्क में मर्ज़ी थी उसकी , न वतन उसकी रजा से
वो तो कुल नौ ही बरस का था उसे क्यों चुनकर,
फिरकादाराना फसादात ने कल क़त्ल किया
---गुलज़ार
( दीपक पाण्डेय के सौजन्य से )
बाग़ से तो दुआ माँगते चलो
जिसमें खिले हैं फूल वो डाली हरी रहे,
~ निदा फ़ाज़ली
जिसमें खिले हैं फूल वो डाली हरी रहे,
~ निदा फ़ाज़ली
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