Sunday, 10 May 2015

रोचक साहित्यिक समाचार



         रोचक साहित्यिक समाचार 

अभी अभी यह भी पता लगा िक कैनेडा की यार्क यूनिवर्सटी (टोरेंटो में) मेरे उपन्यास "हवन" का अंग्रेजी अनुवाद " द फायर सैक्रिफाइस" पढाया जा रहा है. यह उपन्यास न्यूयार्क यूनिवरसिटि अौर सिटि यूनिवरसिटि में भी पढाया जाता है.
-- सुषम बेदी
( फेस बुक पर  २० सितम्बर २०१४)

चाय कॅ।फ़ी उर्फ़ तीसरी दुनिया
समलैँगिँक सम्बन्धोँ पर आधारित एक पठनीय उपन्यास
लेखिका -शची मिश्र
मानव प्रकाशन
कोलाकाता
-- सोनी पाण्डेय के सौजन्य से ।

बता मुझे ऐ विहंग विदेशी...

यह थी पहली कविता छायावाद की । छायावाद का जन्म हुआ पं. मुकुटधर पांडेय की कलम से । आज उनकी जयंती पर नमन !
-- जयप्रकाश मानस के सौजन्य से
 फेसबुक में ३० सितम्बर २०१४ को प्रकाशित ।



विश्व इन्टरनेट दिवस की बधाई

एक कम्प्यूटर से दूसरे कम्प्यूटर को सन्देश भेजना अर्थात इन्टरनेट की शुरूआत को आज 45 बरस पूरे हो गए। 29 अक्तूबर 1969 की रात को 10:30 बजे चार्ली क्लाइन ने अमेरिका के स्टैनफोर्ड रिसर्च इंस्टिट्यूट से 400 मील दूरी पर लोस एंजेल्स के कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में बैठे अपने सहयोगी बिल डुवाल से अंग्रेजी का L अक्षर टाइप करके भेजा। फिर उन्होंने अंग्रेजी का O अक्षर भेजा। टेलीफोन से डुवाल ने बताया कि ये दोनों अक्षर उन्हें मिल गए हैं लेकिन इसके बाद जैसे ही क्लाइन ने अंग्रेजी का G अक्षर भेजा, वैसे ही डुवाल का सिस्टम क्रैश हो गया लेकिन इस घटना ने इन्टरनेट को जन्म देने की शुरुआत तो कर ही दी। आज इन्टरनेट ने दुनिया को हमारी अँगुलियों की जद में लाकर खड़ा कर दिया है। बीते बीस बरसों में दुनिया जितनी छोटी हुई है उतनी पहले कभी न थी। आइये उम्मीद करें कि वैज्ञानिक भविष्य में ऐसे आविष्कार भी करेंगे जिनसे दुनिया छोटी ही नहीं बल्कि शांतिमय, नीरोगी, समृद्धिमयऔर सुखमय भी होगी।
चित्र सौजन्य: poynter.org

-- पुनीत बिसारिया के सौजन्य से ।


फेसबुक पर पढने को मिला कि पटेल कश्मीर को पाकिस्तान को दे देना चाहते थे।यह बात पत्रकार कुलदीप नायर की जीवनी से ली/कोट की गयी है। मुझे लगा कि मैं रियेक्ट करूं।पढिये मेरी टिप्पणी:
कश्मीर मीडिया के लिए दुधारु गाय है। गुमनाम व्यक्ति भी आज की तारीख में अगर कश्मीर पर कुछ सही/गलत लिखेगा/बोलेगा तो तुरंत फोकस में आएगा।किसने कब क्या कहा?क्यों कहा? इसकी पड़ताल अब कौन करे?--पूछा जा सकता है कि क्या महाराजा हरिसिंह गलत थे जो उन्होंने भारत के साथ विलय के दस्तावेजों पर सहर्ष हस्ताक्षर किये।कश्मीर में चुनाव नजदीक आ रहे हैं.किसी-न -किसी बहाने से कश्मीर के भूत/भविष्य और वर्तमान पर चर्चा तो होगी ही! पुराने मुर्दे भी उखाड़े जायेंगे और नए मसलें भी खंगाले जायेंगे.अंत में होगा वही जो मंजूरे खुदा होगा.---कहीं खुदा-न-खास्ता पटेल अपनी बात मनवाने में सफल हो जाते तो क्या मालूम शिबन रैणा इस समय अपने पंडित भाइयों के साथ पाकिस्तान के कौनसे शहर में रह रहा होता!हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आठ/नौ सौ साल पहले तक कश्मीर एक हिन्दू बहुल भूभाग था। इस धरती के पूर्वज (शैवधर्म के अनुयायी) हिन्दू थे।बाद में हुए बलपूर्वक धर्मान्तरण ने घाटी में हिन्दुओं को अल्पसंख्यक बना दिया जबकि असल में कश्मीर में हिन्दू बहुसंख्यक थे। उनके कश्मीर प्रेम की बात की अगर अनदेखी भी करें, तो भी नेहरूजी के कश्मीर को अपने साथ रखने के निर्णय को गलत कदापि नहीं ठहराया जा सकता।

--- शिब्बन रैना 
( अलवर , म प्र ) 
४नवम्बर २०१४ को प्रकाशित ।

प्रसिद्ध एक्टर Ajahn Khemadhammo, इंगलैण्ड के वारविकशायर के ग्रामीण क्षेत्र में बिल्कुल एक बुद्धिस्ट भिक्षु की तरह रह रहे हैं । उन्हे कारागार में कैदियों के लिये कार्य करने , उन्हे ध्यान सिखाने के लिये OBE (Officer of the Most Excellent Order of the British Empire) से ब्रिटिस महारानी द्वारा 2003 में सम्मानित किया गया था । आज उनके पास अपने २-३ कपड़ो के अलावा अपना कुछ नहीं है ।
---- शैलेन्द्र प्रताप सिंह 
( लखनऊ उ प्र ) 





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