ग़ज़लनुमॉ
इस क़दर हादसों से यारी है ,
आ गई फिर हमारी बारी है.1
जाने क्या था निगाह में उनके,
अब भी उतरी नही खुमारी है.2
बारहॉ ख्वाब में रहे आए ,
रात फिर भी रही कुवॉरी है.3
रह गए उम्र भर यही रोते ,
छीन ली चीज़ जो हमारी है.4
लाख सोचा हिसाब कर दूं सबका,
रह गई फिर भी कुछ उधारी है .5
कर्ज़ मिलना तो हो गया आसॉ ,
सूद पर मूल से भी भारी है .6
जिसने तामीर मंज़िलें की हैं,
रात फुटपाथ पे गुज़ारी है .7
जो दिहाडी पे खेत जोते है,
कह रहा था ज़मी हमारी है.8
कल ही राज़ी हुआ गवाही को,
हो गई आज चॉदमारी है.9
पंख खुलते ही पैर मुड जाते,
कैसी नायाब साझेदारी है .10
अबकी ऐसे सफ़र पे निकला हूं,
साथ संगी न संगवारी है .11
-- के पी सक्सेना दूसरे
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