Tuesday 19 May 2015

ग़जलनुमा

        ग़ज़लनुमॉ

इस क़दर हादसों से यारी है ,
आ गई फिर हमारी बारी है.1

जाने क्या था निगाह में उनके,
अब भी उतरी नही खुमारी है.2

बारहॉ ख्वाब मे रहे आए ,
रात फिर भी रही कुवॉरी है.3

रह गए उम्र भर यही रोते ,
छीन ली चीज़ जो हमारी है.4

लाख सोचा हिसाब कर दूं सबका,
रह गई फिर भी कुछ उधारी है .5

कर्ज़ मिलना तो हो गया आसॉ ,
सूद पर मूल से भी भारी है .6

जिसने तामीर मंज़िलें की हैं,
रात फुटपाथ पे गुज़ारी है .7

जो दिहाडी पे खेत जोते है,
कह रहा था ज़मी हमारी है.8

कल ही राज़ी हुआ गवाही को,
हो गई आज चॉदमारी है.9

पंख खुलते ही पैर मुड जाते,
कैसी नायाब साझेदारी है .10

अबकी  ऐसे सफ़र पे निकला हूं,
साथ संगी न संगवारी है .11
-- के पी सक्सेना दूसरे 




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