हिन्दी की क़ानून विषयक पत्रिका विधि भारती की सम्पादिका और विधि भारती परिषद
की संचालिका श्रीमती सन्तोष खन्ना कुशल अनुवादक होने के साथ हिन्दी में कविताएँ
भी लिखती हैं ।।उन का कवितासंग्रह और दो उपन्यास छप चुके हैं ।। नीचे उन की एक
ताज़ा कविता प्रस्तुत की जा रही है ।
-- सुधेश
नीलकण्ठ
जन्म है उत्सव
मरण है निशिचत
इस खेल के अंतराल में
जीओ जी भर कर ।
दुख सुख के
दो चषक मिलेंगे
चखना होगा तुम्हें
विष या अमृत ।
उलझोगे
केवल अमृत से
हो सकता है
बन जाओ अमानुष
पर पक्का है
विष पी कर
बन सकते हो
शिव ।
मरण है निशिचत
इस खेल के अंतराल में
जीओ जी भर कर ।
दुख सुख के
दो चषक मिलेंगे
चखना होगा तुम्हें
विष या अमृत ।
उलझोगे
केवल अमृत से
हो सकता है
बन जाओ अमानुष
पर पक्का है
विष पी कर
बन सकते हो
शिव ।
-- श्री मती सन्तोष खन्ना
( दिल्ली )
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