Saturday, 23 May 2015

नील कण्ठ


हिन्दी की क़ानून विषयक पत्रिका विधि भारती की सम्पादिका और विधि भारती परिषद 
की संचालिका श्रीमती सन्तोष खन्ना कुशल अनुवादक होने के साथ हिन्दी में कविताएँ 
भी लिखती हैं ।।उन का कवितासंग्रह और दो उपन्यास छप चुके हैं ।। नीचे उन की एक 
ताज़ा कविता प्रस्तुत की जा रही है । 
--  सुधेश 

नीलकण्ठ 
जन्म है उत्सव
मरण है निशिचत
इस खेल के अंतराल में
जीओ जी भर कर ।
दुख सुख के
दो चषक मिलेंगे 
चखना होगा तुम्हें
विष या अमृत ।
उलझोगे 
केवल अमृत से
हो सकता है
बन जाओ अमानुष
पर पक्का है
विष पी कर
बन सकते हो
शिव 


-- श्री मती सन्तोष खन्ना 
( दिल्ली ) 

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