युवा कवि पवन गोस्वामी की कविताएँ
तब मानवता रोती है
इज़्ज़त का सर जब कटता हो
जब चुपके चुपके घर लुटता हो
जब लहू से लोहित धरती हो
जब पापों से इज़्ज़त पलती हो
तब मानवता रोती है
तभी मानवता रोती है।
जब भ्रष्ट हमारे नेता हों
वे कुत्सित कर्म प्रणेता हों
शहीदों पर शक होता हो
चमक पदक ही खोता हो
तब मानवता रोती है
हां मानवता रोती है।
जब समझौता झाँसा लगता हो
विश्वासी का सर झुकता हो
घर घर आँतकी पलते हों
पीठों पर खंजर चलते हों
तब मानवता रोती है
हाँ तब मानवता रोती है।
जब युद्ध में बेटा प्राण गवाँता
फूलों से सजी अर्थी पर आता
कन्धों पर सवार हो जाता
कपाल-क्रिया का ध्यान जब आता
तब मानवता रोती है।
जब यादों में प्रियतम आता हो
मेरी आँखों में छा जाता हो
जब याद प्रिय मिलन आता हो
सारा जीवन यादों में जाता हो
तब मानवता रोती है
हाँ तब मानवता रोती है।
फूल और कण्टक
फूल खिला है आँगन में
कितना सुंदर लगता है
चहुँ ओर उड़े उस की ख़ुशबू
जब झोंका पवन का चलता है
कण्टक को तब ईर्ष्या होती
क्यों ना मैं भी फूल बना
क्या कुकर्म किया मैं ने
जो सारहीन मैं शूल बना
बोला फूल कुछ यूँ मुस्का
कण्टक भाई मेरी सुन ले
मैं ने जीवन कम पाया है
मेरी तुझसे कोमल काया है।
खिलने पर मुझे तोड देते
सूखा तो मुझे फेंक देते
खिला था तो सीने से लगाते
किसी अपने की तरह
मुरझाया तो भूल जाते हैं
बुरे सपने की तरह
पर भाग्य तेरा है प्यारे
तेरे चुभने पर भी तुझे याद करते सब
प्रियतम प्यारे की तरह ।
घरों की दास्तान
काँटों में उलझता हिन्दुस्तान देखता हूँ
घर घर में बनती दास्तान देखता हूँ
सन सैंतालिस में हुआ था बँटवारा
अब घर घर में पाकिस्तान देखता हूँ ।
भाई के खून का प्यासा अब भाई है
चार बेटों पर भारी पडती माई है
माँ बैठी है बेटों के इंतज़ार में
अन्त समय पर अटका प्राण देखता हूँ।
कमाकर जिनको पाला था जीवन- भर
हाथों के झूलों में झुलाया जीवन-भर
मेरे बुढापे में बेटे हुए धन के लालची
पिता पर चलते तीर कमान देखता हूँ।
हम ऐसे अन्धे भौतिकवादी हैं
पुजारी हिंसा के ऐसे गांधीवादी हैं
प्यार न दिखता है किसी भी मन में
चमकते तन की झूठी शान देखता हूँ।
फैशन के कलियुग में हम जकडे हैं
फ़ैशन ने हमें पकड़ा हम उसे पकड़े हैं
नारी ने लाज छोड़ी बेशर्म पुरुष हुए
नारियों की भूलती अब आन देखता हूँ।
कोई खुश होता नहीं प्रगति देखकर
जैसे धरा विकल सूर्य तेज देखकर
साम, दाम, दण्ड से भेद अपने छिपाते
लोगों के भरे जाते अब कान देखता हूँ।
पूँजीवादी, धनी का बोलबाला है
धन पर कुण्डली मारे फनवाला है
पाप जितने भी किये सब छिप गये
गरीबों के गाँव क़ब्रिस्तान देखता हूँ ।
दोहे
मेरे उनके प्रेम को, जाने क्या हर कोय
समझेगा इस प्रेम को, प्रेमी जिसका होय।
मेरा उनका प्रेम क्या, अब चढता परवान
मैं सुख से हूँ अजनबी, वो दुख से अनजान ।
बदल सकूँ ना आजीवन जैसा पाया रूप
सोच यही मैं खुश रहूँ हो छाया या धूप॥
प्रेमी करते प्रेम को, क्यों जग में बदनाम
जो वियोग ज्वाला जले उज्ज्वल करते नाम ।
प्रेमी चाहे प्रेम को ,चाहे नहीं जहान
दुनिया निष्ठुर क्यों मगर बन जाती व्यवधान ।
हारिल की लकडी बने आए मेरे द्वार
कैसे उनको छोड दूँ है असीम जब प्यार ।
प्रेमी मन की मौज में, दिया झोपडा फूँक
रण-भेरी अब बज उठी, दिया शंख है हूँक ।
--- पवन गोस्वामी
( मिनीकोय , लक्षद्वीप )
No comments:
Post a Comment
Add