अमेरिका में बसी भारतीय कवयित्री शशि पाधा ने रोचक संस्मरण तथा यात्रा वृत्तान्त लिखे है
और साथ ही अनेक मर्म स्पर्शी कविताएँ भी लिखी हैं । यहाँ पढ़िये उन की कुछ कविताएँ ---
--- सुधेश
बीज मंत्र
चल पथिक, कभी न रुक
ताड़ के पेड़ सा
छू गगन ;कभी न झुक ।
लाँघ ले व्यवधान सब
तोड़ दे पाषाण अब
गिरा सभी प्राचीर –बाँध
मोड़ ले हवा का रुख |
जो बढा, जिया वही
बीज मन्त्र है यही
हो विजय बल –कर्म की
संकल्प से ना हो विमुख |
जिधर चलो, डगर मुड़े
कारवां आ संग जुड़े
ना सुध हो हार –जीत की
लक्ष्य ही हो प्रमुख ।
रचो कोई नई कथा
पंथ नव , नई प्रथा
थाम नई लेखनी
लिखो सभी का भाग्य–सुख |
क्षितिज के पुलिन पे
क्षितिज के पुलिन पे
बैठ सूर्य गा रहा
धरा की स्वर्ण आभ को
नयन में सजा रहा
आ खड़ी विदा घड़ी
अनमना सा हो रहा
दिवस की अठखेलियाँ
हृदय में संजो रहा
जाऊँ, कि ना जाऊँ अब
विकल मन से पूछता
असह्य विरह वेदना
निदान कुछ ना सूझता
निहारता गगन की ओर
चाँद मुस्कुरा रहा
प्रश्न चिह्न सा खड़ा
पूछता जा रहा |
नभ के किसी छोर से
साँझ ढलती आ रही
मणि सी नीली नीलिमा
दिशा दिशा बिछा रही
श्यामली अलक खुली
मेघ डगमगा गए
घुल गई थी चन्द्रिमा
दीप जगमगा गए
आह! धरा सजी –धजी
क्यूँ मैं छोड़ जा रहा
खड़ा जो रथ रेख पर
क्यूँ ना रोक पा रहा ?
रुका नहीं कोई यहाँ
अथक समय चल रहा
नियति के विधान का
सदैव ही बल रहा
सूर्य हो या चाँद हो
उदय-अस्त भाग्य में
आवागमन की रीत यह
विधि के साम्राज्य में ।
विधना को मान सूर्य भी
सिंधु में समा रहा
कल उदय की योजना
मन ही मन बना रहा |
जल रहा अलाव
****
जल रहा अलाव आज
लोग भी होंगे वहीं
मन की पीर –भटकनें
झोंकते होंगे वहीं ।
कहीं कोई सुना रहा
विषाद की व्यथा कथा
कोई काँधे हाथ धर
निभा रहा चिर प्रथा ।
उलझनों की गाँठ सब
खोलते होंगे वहीं ।
गगन में जो चाँद था
कल जरा घट जाएगा
कुछ दिनों की बात है
आएगा , यों मुस्कराएगा ।
एक भी तारा दिखे तो
और भी होंगे वहीं |
दिवस भर की विषमता
ओढ़ कोई सोता नहीं
अश्रुओं का भार कोई
रात भर ढोता नहीं ।
पलक धीर हो बंधा
स्वप्न भी होंगे वहीं ।
खोल दे वितान मन
छट गई है स्याह धुंध,नभ धरा के दरमियाँ
मुंडेर को छत की छू रही हैं रश्मियाँ
हो रहा विहान मन
खोल दे वितान मन |
कल की बात कल रही
हवाओं के हिंडोल पे
पुष्प गंध बस रही ।
उड़ रही हैं दूर तक, धूप की तितलियाँ
तू भी भर उड़ान मन,खोल दे वितान मन |
झूमने लगी लहर, सूर्य का पा परस
बूँद-बूँद झर रहा,ज्योति से भरा कलश
नटी सी थिरकने लगीं, मांझियों की कश्तियाँ
छेड़ कोई गान मन , खोल दे वितान मन |
दूर उस पहाड़ पर दीप एक जल रहा
विश्वास का खड्ग लिये आँधियों से लड़ रहा
संग संग चल मेरे, कह रहीं पगडंडियाँ
मन की बात मान मन , खोल दे वितान मन |
समझौतों की लिखा पढ़ी
समझौतों की लिखा पढ़ी में
अक्षर-अक्षर घाव हुआ
वेदन का घेराव हुआ |
अक्षर-अक्षर घाव हुआ
वेदन का घेराव हुआ |
ना थे कोइ कंकर पत्थर
ना थे पैने तीर कमान
शब्दों की थी घेरा बंदी
रक्षक खड़े रहे अनजान
झूठ सत्य का हुआ छलावा
शकुनि जैसा दाँव हुआ |
ना थे पैने तीर कमान
शब्दों की थी घेरा बंदी
रक्षक खड़े रहे अनजान
झूठ सत्य का हुआ छलावा
शकुनि जैसा दाँव हुआ |
ईंट-ईंट और टुकड़ा-टुकड़ा
रिश्तों की पहचान बनी
छत दीवारें, बंटे चौबारे
सीमा बीच दालान बनी ।
गठरी बाँधे पूछे देहरी
मोल मेरा किस भाव हुआ?
रिश्तों की पहचान बनी
छत दीवारें, बंटे चौबारे
सीमा बीच दालान बनी ।
गठरी बाँधे पूछे देहरी
मोल मेरा किस भाव हुआ?
संस्कारों की पावन पोथी
पन्ना-पन्ना जली जहाँ
शीश झुकाए मर्यादाएँ
सीढ़ी-सीढ़ी ढली वहाँ
हाथ जोड़ता तुलसी चौरा
मूल्यों का दुर्भाव हुआ|
पन्ना-पन्ना जली जहाँ
शीश झुकाए मर्यादाएँ
सीढ़ी-सीढ़ी ढली वहाँ
हाथ जोड़ता तुलसी चौरा
मूल्यों का दुर्भाव हुआ|
शून्य भेदती रह गई आँखें
ममता गुमसुम मौन खड़ी
बूढ़े बरगद की शाखों से
पत्ती –पत्ती पीर झरी ।
अधिकारों की महा प्रलय में
स्वारथ का टकराव हुआ|
ममता गुमसुम मौन खड़ी
बूढ़े बरगद की शाखों से
पत्ती –पत्ती पीर झरी ।
अधिकारों की महा प्रलय में
स्वारथ का टकराव हुआ|
समझौतों की लिखा पढ़ी में
अक्षर-अक्षर घाव हुआ |
-शशि पाधा
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