मेरे दोहे
इन को तो बस चाहिये सब की केवल वाह
देश मरे मानव मरे दुख में उठे क़राह
इस आभासी जगत में मिलना तो है दूर
निकट न आएँ दिल मगर प्रेम नशे में चूर ।
यों ही बस उडती रहो देश कि हो परदेश
जोश जोश में पर रखो तुम संभाल कर होश
जितनी चाहे देख लो भारत की तस्वीर
काली स्याही से लिखी पर उस की तक़दीर ।
नाबराबरी हर तरफ़ देखो भर कर नैन
लेकिन मिल ही जाएँगे काले जेन्टिलमैन ।
बिना मीत सब व्यर्थ है यह है दिल की बात
जो है तेरी बात बात वह मेरे दिल की बात ।
जीवन में जब भी मिले कोई मन का मीत
जीवन संगर में मिली मानो चाही जीत ।
वे चौकन्ने जीव हैं ऐसा होगा कौन
कभी काव्य ही उचरते अक्सर रहते मौन ।
मुझे गाँव से प्यार है लेकिन नहीं गँवार
रहता हूँ मैं शहर में नहीं शहर से प्यार ।
हिन्दी थी बेहाल सी अब भी है बेहाल
आगे वैसा घटेगा जैसा अब है हाल ।
मेरा भी इक गाँव था उसे गया अब भूल
उसे याद कर पर अभी हिय में गड़ता शूल ।
पुरस्कार लपके सभी बाक़ी बचा न कोय ू
अब लौटा कर देख लें कुछ तो नाटक होय ।
जब कोई अपना मिले मैं मिल लूँ सौ बार
आन पराया भी मिले तो समझूँ त्योहार ।
आज मनुज बोलता बहुत बन्द किये हैं कान
कैसे फिर वह सुनेगा कवि की छेड़ी तान ।
जो रचना लाइक करे पढ कर वह है मित्र
चित्र भले सुन्दर रहे अथवा चित्र विचित्र ।
यह कुर्सी का काठ ही होता है निर्लज्ज ढ
रागी मन माने नहीं जाऊँ इस को तज्ज ।
मनमोहन मन में किसे फ़िर तुम रहे पुकार
मन दर्पण में सिर झुका दर्शन हों साकार ।
नहीं इधर हैं नहीं वे उधर रहेंगे आज
वहीं रहेंगे इधर या उधर बने जंह काज ।
बचपन से जब खड़ी हो भेद भाव दीवाल
बाल दिवस धोखा लगे बच्चे जब बेहाल ।
उन से कुछ कैसे कहूं डर लागे है मोय
उन की बस सुनता रहूँ सुनता जाऊँ सोय ।
ऊँचे हों अरमान नित फिर ऊँचा हो भाल
कर्म सदा करते रहो जीवन मालामाल ।
माटी का दीपक सजा घर आँगन दीवार
मन को भी जगमग करे खोलो हृदयकिवार ।
अरमां ऊँचे हों सदा ऊँचा होगा भाल
कर्म सदा करते रहो जीवन मालामाल ।
धन्य धन्य हैं आप को शादी के ये साल
यों ही घुलमिल कर रहो आगे सालों साल ।
जन्म दिवस यह आप का यों आए सौ साल
स्वयम् सुखी हों आप से हिन्दी मालामाल ।
खूब कही है आप ने अपने मन की बात
कहते सब मिलती कहाँ सब के मन की बात ।
कहाँ यज्ञ की आग अब बुझे यहाँ पर कुण्ड
वेदी पर अब नाचते खल पुरुषों के झुण्ड ।
सब कुछ स्वाहा कर दिया बाक़ी बचा न कोय
कुछ तो घर में चाहिये पेट न भूखा सोय ।
आशा पर जीवन टिका लौटेगा मन मीत
यहाँ जीत में हार है और हार में जीत ।
वृन्दावन होगा कहाँ जहाँ न वन्य बहार
अपने बेगाने हुए सूने आँगन द्वार ।
आप पचपन के हुए सुन कर लगा अजीब
साठे पर पाठे बने ऐसे लोग क़रीब ।
मिट्टी मिट्टी एक है क्या मेरी या तोर
मिल कर सब आनन्द लें नाचे मन का मोर ।
सुना सुनाया बहुत कुछ अब कुछ गुन भी लेय
बुरा लगे तो छोड दो अच्छा है सो लेय ।
जन्म दिवस पर आप के शुभकामना हज़ार
फले और फूले सदा गीतों का संसार ।
घर में घर को ढूँढते हम भी थे हैरान
मन में मन को पा लिया तभी हुए इन्सान ।
चित्र सुचित्र विचित्र हैं रखते छवि को खोल
बोल नहीं सकते मगर मीठे कविता बोल ।
-- सुधेश
३१४ सरल अपार्टमैन्ट्स , द्वारिका , सैक्टर १०
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