दीप्ति शर्मा आगरा की नवोदित कवयित्री हैं , जिन की कविताओं में नवोदित प्रेम
आहट
बादलों का अट्टहास
प्रेम
प्रेम के ढंग
की कोमल अनुभूतियाँ कथन की ताज़गी और सादगी के साथ प्रकट होती हैं ।
आशा है कि भविष्य में उन की कविता के विविध आयाम खुलेंगे ।
---- सुधेश
आहट
घने कोहरे में बादलों की आहट
तैरती यादों को बरसा रही है
देखो महसूस करो
किसी अपने के होने को
तो आहटें संवाद करेंगी
फिर ये मौन टूटेगा ही
जब धरती भीग जायेगी
तब ये बारिश नहीं कहलायेगी
तब यह तुम्हारी आहटों की संरचना सी लगेगी
और मेरा मौन आहटों में
मुखरित हो जायेगा ।
तैरती यादों को बरसा रही है
देखो महसूस करो
किसी अपने के होने को
तो आहटें संवाद करेंगी
फिर ये मौन टूटेगा ही
जब धरती भीग जायेगी
तब ये बारिश नहीं कहलायेगी
तब यह तुम्हारी आहटों की संरचना सी लगेगी
और मेरा मौन आहटों में
मुखरित हो जायेगा ।
बादलों का अट्टहास
वहाँ दूर आसमान में
बादलों का अट्टहास
और मूसलाधार बारिश
उस पर तुम्हारा मुझसे मिलना
मन को पुलकित कर रहा है
मैं तुम्हारी दी हुई
लाल बनारसी साड़ी में
प्रेम पहन रही हूँ
कोमल, मखमली
तुम्हारी गूँजती आवाज
सा प्रेम
बाँधा है पैरों में
जिसकी आवाज़
तुम्हारी आवाज सी मधुर है
मैं चल रही हूँ प्रेम में
तुमसे मिलने को
अब ये बारिश भी
मुझे रोक ना पाएगी ।
और मूसलाधार बारिश
उस पर तुम्हारा मुझसे मिलना
मन को पुलकित कर रहा है
मैं तुम्हारी दी हुई
लाल बनारसी साड़ी में
प्रेम पहन रही हूँ
कोमल, मखमली
तुम्हारी गूँजती आवाज
सा प्रेम
बाँधा है पैरों में
जिसकी आवाज़
तुम्हारी आवाज सी मधुर है
मैं चल रही हूँ प्रेम में
तुमसे मिलने को
अब ये बारिश भी
मुझे रोक ना पाएगी ।
प्रेम
मैं जी रही हूँ प्रेम
अँगुली के पोरों में रंग भर
दीवार पर चित्रों को उकेरती
तुम्हारी छवि बनाती
मैं रच रही हूँ प्रेम
रंगों को घोलती
गुलाबी , लाल,पीला
हर कैनवास को रंगती
तुम्हारी रंगत से
मैं रंग रही हूँ प्रेम
तुम्हारे लिये
हर दीवार पर
जिस पर तुम
सिर टिका कर बैठोगे ।
अँगुली के पोरों में रंग भर
दीवार पर चित्रों को उकेरती
तुम्हारी छवि बनाती
मैं रच रही हूँ प्रेम
रंगों को घोलती
गुलाबी , लाल,पीला
हर कैनवास को रंगती
तुम्हारी रंगत से
मैं रंग रही हूँ प्रेम
तुम्हारे लिये
हर दीवार पर
जिस पर तुम
सिर टिका कर बैठोगे ।
प्रेम के ढंग
जब मैं प्रेम लिखूंगी
अपने हाथों से,
सुई में धागा पिरो
कपड़े का एक एक रेशा सिऊगी
तुम्हारे लिये
मजबूती से कपड़े का
एक एक रेशा जोडूंगी
और जब उसे पहनने को बढ़ेगे
तुम्हारे हाथ
तब उस पल
उस अहसास से
मेरा प्रेम अमर हो जायेगा ।
अपने हाथों से,
सुई में धागा पिरो
कपड़े का एक एक रेशा सिऊगी
तुम्हारे लिये
मजबूती से कपड़े का
एक एक रेशा जोडूंगी
और जब उसे पहनने को बढ़ेगे
तुम्हारे हाथ
तब उस पल
उस अहसास से
मेरा प्रेम अमर हो जायेगा ।
मुट्ठियाँ...
बंद मुट्ठी के बीचों - बीच
एकत्र किये स्मृतियों के चिन्ह
कितने सुन्दर जान पड़ते हैं
रात के चादर के स्याह
रंग में डूबा हर एक अक्षर
उन स्मृतियों का
निकल रहा है मुट्ठी की ढीली पकड़ से
मैं मुट्ठियों को बंद करती
खुले बालों के साथ
उन स्मृतियों को समेट रही हूँ
वहीं दूर से आती फीकी चाँदनी
धीरे - धीरे तेज होकर
स्मृतियों को देदीप्यमान कर
आज्ञा दे रही हैं
खुले वातावरण में विचरो ,
मुट्ठियों की कैद से बाहर
और ऐलान कर दो
तुम दीप्ति हो, प्रकाशमय हो
बस यूँ ही धीरे - धीरे
मेरी मुट्ठियाँ खुल गयीं
और आजाद हो गयीं स्मृतियाँ
सदा के लिये ।
एकत्र किये स्मृतियों के चिन्ह
कितने सुन्दर जान पड़ते हैं
रात के चादर के स्याह
रंग में डूबा हर एक अक्षर
उन स्मृतियों का
निकल रहा है मुट्ठी की ढीली पकड़ से
मैं मुट्ठियों को बंद करती
खुले बालों के साथ
उन स्मृतियों को समेट रही हूँ
वहीं दूर से आती फीकी चाँदनी
धीरे - धीरे तेज होकर
स्मृतियों को देदीप्यमान कर
आज्ञा दे रही हैं
खुले वातावरण में विचरो ,
मुट्ठियों की कैद से बाहर
और ऐलान कर दो
तुम दीप्ति हो, प्रकाशमय हो
बस यूँ ही धीरे - धीरे
मेरी मुट्ठियाँ खुल गयीं
और आजाद हो गयीं स्मृतियाँ
सदा के लिये ।
-- दीप्ति शर्मा
२२ अदान बाग़ एक्सटैन्शन , दयाल बाग़
आगरा २८२००५ ( उ प्र )
No comments:
Post a Comment
Add