Thursday, 15 September 2016

शुभदा वाजपेयी की रचनाएँ

    कानपुर विश्वविद्यालय की स्नातक श्रीमती शुभदा वाजपेयी हिन्दी की श्रेष्ठ गीतकार 
   ग़ज़लकार दोहाकार और मुक्तक लेखिका हैं । 
भारतीय साहित्य उत्थान समिति दिल्ली द्वारा *गगन स्वर  सेवी सम्मान और 
हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी आदि अनेक संस्थाओं से उन्हें अनेक सम्मान प्राप्त 
हो चुके हैं। 
आकाश वाणी पर और  अनेक काव्य मंचों पर भी वे कविता पाठ कर चुकी हैं ।
रेडियो  द्वारका ( दिल्ली  )  से उन के मधुर गीत उन के स्वर में प्रसारित हो चुके  
हैं । उन की रचनाएँ सहयोगी काव्य संकलन और अनेक पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित 
हुईं । शुभदा जी एक कुशल गृहिणी हैं । 
उन के कुछ गीत और गजलें यहाँ प्रस्तुत हैं । 
    ----  सुधेश 

       गीत 
जीवन एक अभियान हो गया ।
जितनी अड़चन मिली राह में,
सफ़र और आसान हो गया।
सोच रहे थे हम मन ही मन
पानी ही अपना जीवन धन
ऐसे सूखे ताल तलैया तन,
मन रेगिस्तान हो गया।
कौन है अपना कौन पराया
ये पागल मन समझ ना पाया
जब से ठुकराया अपनों ने
भले,बुरे का ज्ञान हो गया।
तिनका, तिनका माया जोड़ी
बीती बहुत रही अब थोड़ी
ऐसे रंगी श्याम के रंग में
केसरिया परिधान हो गया।
सबकी अपनी अलग कतारें
आँगन बीच खिंची दीवारें
दरवाज़े का बूढा बरगद
झुक कर तीरकमान हो गया।
--- शुभदा वाजपेयी 

आज गगन में चाँद सितारे रात चांदनी आई है,
क्या बतलाएं प्रियतम फिर से याद तुम्हारी आई है।
आँखों से आंसू बहते हैं,नयन तुम्हें ही खोज रहे,
जब से तुम बिछुड़े हो साजन, राहें तकते रोज रहे,
यूँ लगता है तुमने मेरी सुधि बिलकुल ही बिसराई है।
जब जब सावन की ऋतु आती,मन मेरा हर्षाता है
लगता है बादल की ओट से चेहरा कोई बुलाता है
सब खुश हैं बस कली हमारे ही मन की मुरझाई है।
आस यही उर को मेरे कितनी जल्दी तुम आ जाओ
कुछ तुम मेरी व्यथा सुनो और अपनी मुझे सुना जाओ
रिमझिम बरसें नभ से बूंदें आँख मेरी भर आई है !
शुभदा बाजपेयी
           गजलें 

जिन्हें अपना समझ कर हम सभी दुखड़े बताते हैं
वही  बन कर  सितमगर  बिजलियाँ  दिल पे गिराते हैं ।
भला करने चले हम तो ,बुराई मिल सदा जाती
सुनाएं हाल दिल अपना किसे,  नहीं हम जान पाते हैं 
भले ही राह मुश्किल हो,हमे चलना ज़रूरी है,
निराले बाग दिखते हैं,जहाँ हम गुल सजाते हैं।
बहुत देखा सभी रिश्ते , वफ़ा से कुछ नहीं हासिल
सिला हमको मिला ऐसा ,नही हम भूल पाते हैं।
हमारी पीर को जानो हमे अपना  समझ कर तुम,
हमारे अपने ही  आकर , किनारे पर डुबाते हैं।
कसक कर दिल ये कहता है, न बारिश आँख की रूकती
दर्द अपने ही दिल का हम , सदा गाकर सुनाते हैं।
उदासी का यही आलम , सहन करना सदा 'शुभदा',
नही हम जानते फिर भी ,उन्हें ही सब बताते हैं।
शुभदा वाजपेयी 

पृष्ठ पलट देखूं जीवन के क्या खोया और क्या पाया
पाना सब चाहा मैंने पर हाथ नहीं कुछ भी आया।
कुछ जीवन की यादें हैं जिनके दम अब तक ज़िन्दा हूँ
जीवन की मुश्किल घड़ियों में जरा नहीं दिल घबराया।
सूख गया जब आशाओं का सब पानी चिंगारी से
तब जाकर मनहूस घडी में अब ये बादल भी छाया।
बचपन बीता गई जवानी अब जब ठूंठ सी सांसें हैं
बे-गैरत इंसान चला यह बतलाने सब है माया।
नीरस है जीवन का मेला नहीं है कोई रंग उमंग
आस का दीपक बुझा दिया है फर्क नहीं कोई आया।
'शुभदा' कौन सुने अब धुन को रंगमहल सब सूने हैं
किसने छेडी तान सुरीली किसने गीत मधुर गाया।
शुभदा वाजपेई

छत्तरपुर एक्सटेंशन दिल्ली

No comments:

Post a Comment

Add

चण्डीगढ़ की हिन्दी कवयित्री श्रीमती अलका कांसरा की कुछ कविताएँ

Hindi poems /    Alka kansra / Chandi Garh Punjab    चण्डीगढ़   गढ़     में   रसायन   शास्त्र   की   प्रोफ़ेसर   श्रीमती   अलका   कांसरा   ह...