Wednesday, 17 May 2017

वसुन्धरा पाण्डेय की चुनी हुई कविताएँ

   कुशीनगर (  उ प्र ) की कवयित्री वसुन्धरा पाण्डेय की कविताएँ पढ़ना एक सुखद 
अनुभव है । 

उन की कुछ चुनी हुई कविताएँ आप के अवलोकनार्थ यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ । 

  ----  सुधेश 
प्रेम
....
एक ख़ामोशी चुपचाप
पत्तों पर ठहर गई
आसमान में तारे टिमटिमाते रहे
आदमियत की परम्परा को टकराता रहा
एक शब्द —प्रेम
बचा रहा प्रेम अब भी
किसी –किसी में
कोई सीमा नही
एक छोर से दूसरे छोर तक
बजती रही रात…!

पहाड़ में आदिवासी
....
पसीना चूता
तपते नुकीले पत्थर कांटे
पैरों में चुभते
पर..उनके पाँव
हार नही मानते
पाँव सुस्ताना नही चाहता
देंह माँदगी  से चूर नही होती..
पीते बहते झरने का पानी
खाते…मूढ़ी रोटी रगडा,
बांधे हुए तुमड़ी से (लौकी की तुमड़ी)
सोते शीतल छांह
कितने सरल होते ये… !
आम्रपाली
वह प्राणों सी प्रिय
उमगता यौवन
उफनती इच्छाएं लिए बड़ी हो रही थी
ललाट पर
चिंता की रेखा लिए 
कुंचित हुई बाबा की भृकुटी
सहस्त्राधिक बालिकाएं भी
इस कुसुमकुञ्ज-कलिका समान
हो सकती हैं क्या ?
इतनी गंध, कोमलता,
सौन्दर्य भला और किस पुष्प में है ?
दिन-दुगुनी, रात-चौगुनी
अप्रतिम सौन्दर्य-लहरी..
तभी तो बचपन में ही
ले भागे थे अपने गाँव
भय था,
वज्जियों के धिकृत नियम से
कहीं बिटिया 'नगरवधू' ही न
बना दी जाए
पर होनी को कब, कौन टाल सका है ?
बिटिया के मन में उठी
एक कंचुकी की चाह
उस वृद्ध महानामन को लौटा लाई
वैशाली में फिर से
जिसने रच रखा था
आम्रपाली का भविष्य
अपने नियमानुसार
कुलवधू नही
नगरवधू बनना था
उस अभिशप्त सौन्दर्य को
वंचित करते हुए उसे
उसकी नैसर्गिक प्रीत से
क्या आज भी
वैशाली के उस नियम में कोई
बदलाव नजर आता है ...?
(शब्द नदी है''  से)

"गहरे निशान" 
एक क़तरा
बहका और चल पड़ा..
चल पड़ा ढूँढने मंज़िल 
रास्ते ने समझाया
कठिनाइयों का अहसास दिलाया
पर जब ठान ली तो ठान ली 
फूलों ने बहकाया
काटों ने न्योता दिया
बारिश ने सताया
कई-कई कतरे साथ मिले
देखते-देखते बना  दरिया
ताक़त का अहसास हुआ 
अदना सा इक कतरा
सीने में जोश लिए
विराट व्यक्तित्व बना
अब तो कोई भय भी न था
बस जुनून था
समुद्र नाप लेने का 
बहका, गिरा और समुद्र हुआ 
छोड़ गया गहरे निशान .. !

फागुन गीत 
*********
सुन रे पिया कोयलिया कूके
सुन रे पिया कोयलिया कूके..कोयलिया कूके ..कोयलिया कूके
बागों मा कोयलिया कूके
कोयलिया कूके कोयलिया कूके
बागों के आमा बहुत बौराये
बहुत बौराये बहुत बौराये बहुत बौराये
गुंजन गुंजन भंवरा गुनगुनाये
भंवरा गुनगुनाये भंवरा गुनगुनाये
सुन रे पिया …
कलियां पलाश की ले अंगड़ाइयां
ले अंगड़ाइयां ले अंगड़ाइयां
चिड़ियाँ चहक रही डालियाँ डालियाँ
सरसो के खेत बहुत छतनाये
बहुत छतनाये बहुत छतनाये
जियरा हुलस -हुलस रागिनी गाये
मादक मौसम बहुत इठलाये
बहुत इठलाये ..बहुत इठलाये
तन -मन में पिया तोरे राग
रस बस जाए
रस-बस जाए
देखो पिया फागुन माह आये ,फागुन माह आये…। 

      "विसर्जन" 
सौंपते हुए 
पहाड़
घाटियों सा  मन 
लहलहाते
वन-उपवन 
कोमल पत्तियों सा
ह्रदय पटल
सौंपते हुए
बूँद-बूँद लहू
रातें... नींद
विसर्जन
स्वयम का
अहम् का
सरल
नहीं होता ... प्रेम...!

       सोचा न था 
इतने
करीब आ जाओगे 
कभी सोचा न था 
मैं लहरों सी
हर बार
नई मंजिल को
छूने की धुन में 
इतनी
आगे निकल आऊंगी
कभी सोचा न था 
लहरों को देखा है न
आती हैं ..
किनारे से लिपटती
खिलवाड़ करती 
लौट जाती हैं
हमारा रिश्ता ही कुछ ऐसा है  
चांदनी
चाँद की
थिरकती उंगुलियां 
हर बार
नई धुन पैदा करती है 
हर बार 
धरती पर
नया  एहसास
नयी भाषा में
लिख जाती है कुछ
पढ़ पाऊंगी  
कभी सोचा न था  ...!

     मुझको भी अन्दर आने दो,
ओ मेरे पोखर ,ओ मेरे पोखर
कांच सा सुन्दर क्यूँ दिखते हो ?
जी करता छपाक से कुदूं
और तेरी होकर रह जाऊं
मुझको भी अन्दर आने दो
कुमुदिनी सा खिल जाने दो
मछलियों सा उधम मचाऊं
इस कोने उस कोने जाऊं
डाले जब भी बंशी कोई
और कहाँ तुझमे छुप जाऊं
मैं तो रह गयी तेरी होकर
ओ मेरे पोखर ,ओ मेरे पोखर ...!

          परिचय एवम् प्रकाशन 
कुशीनगर ( गोरख पुर उ प्र ) की कवयित्री वसुन्धरा पाण्डेय के 
प्रकाशन  --
कविता संग्रह ''शब्द नदी है' (बोधि प्रकाशन, जयपुर  ) 
'स्त्री होकर सवाल करती है ' (बोधि प्रकाशन, जयपुर  ) 
सारांश समय का '( अंजुमन प्रकाशन इलाहबाद )
और 'सुनो समय जो कहता है’(आरोही प्रकाशन, दिल्ली) में कवितायेँ संकलित
 शिक्षा-
बुद्ध स्नातकोत्तर महाविद्यालय कुशीनगर (सम्बद्ध गोरखपुर विश्वविद्यालय )से हिंदी साहित्य में  एम ए

फोटो 
 

No comments:

Post a Comment

Add

चण्डीगढ़ की हिन्दी कवयित्री श्रीमती अलका कांसरा की कुछ कविताएँ

Hindi poems /    Alka kansra / Chandi Garh Punjab    चण्डीगढ़   गढ़     में   रसायन   शास्त्र   की   प्रोफ़ेसर   श्रीमती   अलका   कांसरा   ह...