Saturday, 20 May 2017

हरियाणा की कवयित्री डेज़ी नेहरा की कविताएँ

हरियाणा की कवयित्री डेज़ी नेहरा की कविताओं में प्रेम की मादकता 
के साथ एक तार्शनिकता भी मिलती है । उन में प्रकृति के विभिन्न रंगों 
का वैभव भी मिलता है । 

उन का संक्षिप्त परिचय यह है । 

डॉ डेज़ी
एसोसिएट प्रोफेसरअंग्रेजीगर्ल्सकॉलेज
भक्त फूल सिंह महिला विश्वविद्यालय
खानपुर कलां (सोनीपत


शिक्षाएम.., एम.फिल. (.एल.टी.)पी.एच.डी.

प्रकाशित हिंदी पुस्तकें: 2

1. आसकविता संग्रह (2010)
2. करवटें मौसम की, कविता संग्रह (2017)

यहाँ उन की कुछ चुनी हुई कविताएँ प्रस्तुत कर रहा हूँ ।

----  सुधेश


परम्परा

एक उत्तर
तो एक दक्षिण
स्वाभाव दोनों का
एकदम भिन्न

एक आसमां को निहारे
एक जमीन से भी नीचे
एक - दूसरे को कोसें दोनों
जबड़ों को भीचें 

एक है सादा सरल तो
एक पर चढ़ा ज़माने का रंग
अपनी-अपनी जिद के पक्के
कोई  बदले ढंग

एक को भाए मुक्ति
तो दूजे को बंधन
हर रोज लड़ते दोनों 
अक्सर ही रहती अनबन

किन्तु
फिर भी
ये जुड़े हैं
निभाने को

एक ऐसी परम्परा को
जो इजाजत नहीं देती
अलग होने की
सिर्फ इस वजह से
कि

प्रेम नहीं है



जवाँ बुलबुलोसब तुम्हारा ही तो है...


भरो उड़ान कि आसमाँ तुम्हारा ही तो है
ये गुलशनये गुलिस्तां तुम्हारा ही तो है !
पंख 'तुम्हारे', परवाज़ 'तुम्हारीहै
परक्षितिज के उस पार 'जाना मेरी बुलबुलों
ये इस पार जो 'है' - सब तुम्हारा ही तो है !

चहकोमहकोलहको
बस, 'बनाओ आदत गरजने की
क्यूंकि 'मिठासपर सारा हक़ - तुम्हारा ही तो है !

झपटे जो गिद्ध कोई
टूट पड़ो उस पर
ये कर्तव्यये अधिकार - तुम्हारा ही तो है !

पर रूप धरो तुम 'देवीसा
कि 'शक्तिका वरदान उन्हें
'अप्सराबन  दिखो सदा
सिर्फ 'रिझानेका मिला काम उन्हें
अब कौनसा रूप है धरना
ये सोचना - काम तुम्हारा ही तो है !

'शक्तिहै वोजिसने कुचले दानव भी
'मेनकातो बस कर सकती तप-भंग का तांडव ही

'दुर्गामें तो कभी  दिखी - लालसा किसी को रिझाने की
'मेनकाको कभी शक्ति  मिली - महिषासुरों को हराने की

मारना है 'पापकोथोड़ी पहल तुम भी करो
लेना है प्रतिकार तोथोड़ी पहल तुम भी करो

कामना है 'शक्तिकी - तो देवी सा रूप धरो
कि...
गुलों का प्यार बने गिद्धों का प्रहार
ये सवाल तुम्हारा और इसका जवाब भी तुम्हारा ही तो है!




दहलीज़

नज़रों ने खेला खेल था
होना तेरा मेरा मेल था
बरसों बीते संग जीते-जीते
दुःख को सीतेसुख को पीते

मैं 'नेहसे सीढ़ी चढ़ कब की 'देहतक पहुँच गयी
मान गयी ... समझ गयी ...हर तर्क 'देहका
पर ये अचम्भा ही रहेगा प्रिय
तुम क्यों लाँघ नहीं पाये 'देहकी देहलीज़


जी चाहता है ... 

जी चाहता है ...
छोड़ ये आत्मा का घर
जल्दी-बहुत जल्दी पहुंचू
जीवन से अगले पड़ाव पर

सोचता है मन मगर...
कहीं तरसूँगा तो नहीं
पाने को फिर 'यहीडगर
जहाँ हंसने-रोनेपाने-खोने का सफर

जहाँ आँख का पानी
बहे कहीं
कहीं बिन बहे लिखे
नित नयी कहानी

भीतर तक
चीरती वारदातें
अनकहे
दर्दों की बारातें

टिकाती घुटने
समेटती मन
झुकाये सरबना विनम्र
कराती नमन

परिपक्व हो फिर
प्रकृति के हर रूप से पुलकित
न्यौछावर पत्ते-पत्ते पर  
सृष्टि के कण-कण पे मोहित

मोह हो जैसे ही रब से
विछोह मन चाहे तब से
आता जो समझ जीवन-विस्तार
मन फिर तजना चाहे संसार
यही है सार ... यही है सार !

फिर
जी चाहता है...



जीना  गया समझो...


अपना दिल टूटे तो मुस्कुराने का दम
और उसकी 'ज़रा सीउदासी से पिघल जाए मन
तो जीना  गया समझो ...

पसंदीदा फूलों पे जान छिड़कते हो बेशक
पर जिस दिन समझ जाओगे काँटों का भी मन
तो जीना  गया समझो ...

ख़ास लोगों को सलाम करती है भले दुनिया
 जाएगा करना जब राह चलतों को नमन
तो जीना  गया समझो ...

मैंमेरामुझकोमुझसे ... से ज़रा दूर हो के
"इदं  ममव्यवहार में  गया जिस क्षण  
तो जीना  गया समझो.



जीवन

जीवन पानी-पानी है
कहीं ‘गंगा सा
उजला
तो - कहीं ‘यमुना सा
स्वतः ही काला I

झरना बन कर जीवन  
झरता पत्थरों पर
अपने निरंतर प्रवाह से -
किसी पत्थर को देता ‘काई की परत - ज्यों लिप्त भोगी की लगन
किसी को ‘भव्य आभा - ज्यों योगी का माथा I

झील का पानी
महत्वाकांक्षाओं से रहित - 'तृप्त
ठहरा रहे स्वयं  टिकाये रखे भीतर के सारे जीवन को - बरसों
एक आकर्षण ‘अतृप्त सैलानियों के लिए
जो भटकते ‘ठहराव के लिए I

अहा ! पानी बारिश का
मूसलाधारकहीं रिमझिमतो कहीं फुहार सा
बरसता -
कही क्रोधकहीं प्रेमतो कहीं आशीर्वाद सा
किन्तु... ओह !
बदलता मन  दिशा कहीं
कर जाता रेगिस्तान में अनाथ सा I

सागर के गागर में पानी
समेटे - अबूझअगणितअनकही कहानी
ज्यों हम सबकी दादी-नानी
जिनकी झुर्रियों सी लहरें
तट पर भिगोएं यूं हमें
कि जीवन के मीठेपन में
हमें याद रहे खारापन भी I

बरसता है - ठहरता है
पर पानी वही जो बहता है – ‘नदिया सा
रोके नहीं रुकता जो
आसमाँ से टपकी या धरती पे गढ़ी बाधाओं से

दशा बदलेदिशा बदले ... भले
पर
बनाये दम-ख़मतेज़-कभी मद्धम
पानी वही जो बहता है II  
जीवन वही जो रहता है II


डा डेज़ी नाहरा का फोटो 














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