Monday 31 July 2017

स्मरणीय प्रसंग

एक रुपया 

ईश्वर चन्द्र विद्यासागर कलकत्ता में अध्यापन कार्य करते थे। वेतन का उतना ही अंश घर परिवार के लिए खर्च करते जितने में कि औसत नागरिक स्तर का गुजारा चल जाता। शेष भाग वे दूसरे जरूरतमंदों की, विशेषता छात्रों की सहायता में खर्च कर देते थे। आजीवन उनका यही व्रत रहा। 
वे गरीबी में पढ़े थे ओर निर्धनों के लिए आवश्यकताएँ पुरी करने में लगा देते। एक दिन वे बाजार में चले जा रहे थे। एक हताश युवक ने भिखारी की तरह उनसे एक पैसा माँगा। विद्यासागर दानी तो थे पर सत्पात्र की परीक्षा किये बिना किसी की ठगी में ने आते। युवक से जबानी में हट्टे कट्टे होते हुए भी भीख माँगने का कारण पूछा। सारी स्थिति जानने पर माँगने का औचित्य लगा। सो एक पैसा तो दे दिया पर उसे रोककर उससे पूछा कि यदि अधिक मिल जाय तो क्या करोगे? युवक ने कहा कि यदि एक रुपया मिल तो उसका सौदा लेकर गलियों में फेरी लगाने लगूंगा ओर अपने परिवार का पोषण करने में स्वावलम्बी हो जाऊंगा।
विद्यासागर ने एक रुपया उसे ओर दे दिया। उसे लेकर उसने छोटा व्यापार आरंभ कर दिया। काम दिन दिन बढ़ने लगा। कुछ दिन में वह बड़ा व्यापारी बन गया।
एक दिन विद्यासागर उस रास्ते से निकल रहे थे कि व्यापारी दुकान से उतरा उनके चरणों में पड़ा ओर दुकान दिखाने ले गया ओर कहा - यह आपका दिया एक रुपया पूंजी का चमत्कार है। विद्यासागर प्रसन्न हुए ओर कहा जिस प्रकार तुमने सहायता प्राप्त करके उन्नति की उसी प्रकार का लाभ अल्प जरूरतमंदों को भी देते रहना। पात्र उपकरण लेकर ही निश्चिंत नहीं हो जाना चाहिए वरन् वैसा ही लाभ अन्य अनेकों को पहुंचाने के लिए समर्थता की स्थिति में स्वयं कभी उदारता बरतनी चाहिए। व्यापारी ने वैसा ही करते रहने का वचन दिया।
महेश सिँह से साभार 

फेसबुक मे 13 .6.2017 को प्रकाशित ।

यह वर्णन सत्य हो या न हो पर श्रुति माध्यमकी महत्ताको दर्शाता है --
जब डॉ विश्वेश्वरैया ने ट्रेन एक्सीडेंट से पहले ट्रेन रोक दी, एक रोचक घटना
by shabdbeejteam /
डॉ विश्वेश्वरैया एक महान इंजीनियर, राजनेता और मैसूर के दीवान थे. भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित डॉ विश्वेश्वरैया के जीवन से जुड़ी यह रोचक घटना पढ़िए :- 
आधी रात का समय था. रात्रि के शांत अँधेरे में शोर मचाती हुई एक ट्रेन अपने गन्तव्य की ओर चली जा रही थी. एक व्यक्ति ट्रेन के डिब्बे में खिड़की से सिर टिकाकर सो रहा था. अचानक उसकी नींद खुल गयी.
वो एकदम से उछलकर अपनी सीट से उठा और सर के ऊपर लटक रही खतरे की जंजीर खींच दी. चेन खींचते ही ट्रेन धीमी होने लगी और थोड़ी दूर चल कर रुक गयी. ट्रेन के कर्मचारी, सहयात्री और अन्य डिब्बों के लोग उस डिब्बे में यह जानने के लिए गये कि क्या हुआ.
कुछ लोगों को ये लगा कि शायद इस आदमी ने नींद के झोंके में चेन खींची होगी. ये सोचकर वो गुस्से में भी आ गये. आखिर सभी लोगों ने उस आदमी को घेरकर पूंछा कि आखिर उसने ट्रेन क्यूँ खींची.
उस व्यक्ति ने आराम से जवाब दिया – ट्रेन ट्रैक में कुछ मीटर आगे एक क्रैक है. अगर ट्रेन उसके ऊपर से गुजरती तो अनहोनी घट सकती थी.
लोग इस बात से चौंक पड़े, वो बोले – क्या बात कर रहे हो. इस अंधेरी रात में, ट्रेन में बैठे बैठे आपको कैसा पता चल गया कि ट्रेन के आगे पटरी में क्रैक है ? क्या मजाक कर रहे हो ! 
चेन खींचने वाला आदमी बोला – जी नहीं. मुझे चेन खींचने और सबको परेशान करने का कोई इरादा नहीं है. आप लोग जाकर ट्रैक चेक करिए, उसके बाद मुझे बताइयेगा.
रेलवे के कर्मचारी ट्रेन से उतर कर टॉर्च लेकर ट्रैक चेक करने लगे. सभी के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब उन्होंने देखा कि वाकई ट्रेन जहाँ रुकी थी, उससे थोड़ी ही दूर पर ट्रैक में गहरा क्रैक था. अगर ट्रेन क्रैक के ऊपर से गुजरती तो उस अँधेरे, सूनसान इलाके में अवश्य ही बड़ी दुर्घटना घट जाती.
सभी लोग फिर से वापस उसी आदमी के पास पहुंचे जिसने इस बात की पूर्वसूचना दी थी. लोगों के पूछा कि आखिर आपको यह बात पहले ही कैसे पता चल गयी.
उस व्यक्ति ने बताया वो सोते हुए ट्रेन और ट्रैक की आवाज़ सुन रहा था और अचानक ही वह आवाज़ बदल गयी थी. ट्रैक के कम्पन से होने वाली आवाज़ में अचानक आये बड़े बदलाव से उसे पता चल गया कि ट्रैक में आगे अवश्य ही बड़ा क्रैक है.
आश्चर्यजनक रूप से ट्रेन एक्सीडेंट रोकने वाला यह व्यक्ति कोई और नहीं महान भारतीय इंजीनियर डॉ मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया ही थे.
लीना मेँहँदले के सौजन्य से । 
फेसबुक मे 23.7.2017 को प्रकखशित ।

No comments:

Post a Comment

Add

चण्डीगढ़ की हिन्दी कवयित्री श्रीमती अलका कांसरा की कुछ कविताएँ

Hindi poems /    Alka kansra / Chandi Garh Punjab    चण्डीगढ़   गढ़     में   रसायन   शास्त्र   की   प्रोफ़ेसर   श्रीमती   अलका   कांसरा   ह...