हिन्दी की नवोदित कवयित्री शुभदा वाजपेयी विभिन्न पत्रिकाओं में छप
चुकी हैं । उन की अनेक रचनाएँ आकाशवाणी पर और कवि सम्मेलनों
में चाव से सुनी गईं ।
यहाँ उन की कुछ गजलें और दोहे प्रस्तुत कर रहा हूँ ।
सुधेश
गजलें
दौलत का ज़खीरा हो ये अरमान नहीं है
दौलत के बिना जीना भी आसान नहीं है ।
दिल पर हैं मिरे उसकी हुकूमत के ही चर्चे
ये बात अलग है कि वो सुलतान नहीं हैं ।
मरना हो तो मरने पे मेरे आह करें लोग
मौका वो गँवा दूँ ये मेरी शान नहीं है ।
डूबी जो मिरी नाव तो डूबी है ये कैसे
सागर में तो कहने को भी तूफ़ान नहीं है ।
क है हुनर संग तराशी का सभी को
पत्थर हैं यहा कोई भी इंसान नहीं है ।
पहरे हों भले लाख ज़माने के ए "शुभदा"
प्यासी मैं मरूं इसका भी इम्कान नहीं है।
(2)
हासिल सुकूनो चैन उसे उम्र भर न हो
इतना भी ज़िंदगी में कोई दर-ब-दर न हो ।
वो आशिक़ी ही क्या है जो पागल न कर सके
वो हुस्न ख़ाक जिसका कि दिल पर असर न हो ।
फ़रियाद क्या, न जिसका हो माबूद पर असर
किस काम के वो अश्क कि दामन भी तर न हो ।
उस शख़्स से ज़ियादा भला बदनसीब कौन
दुनिया में जिसके पास कोई अपना घर न हो ।
अल्लाह रख सभी को तू अम्नो अमां के साथ
जो हाल इस तरफ़ है कभी भी उधर न हो ।
फिर लुत्फ़ क्या सफ़र का मंज़िल हो सामने
हमवार रास्ता हो कठिन रहगुज़र न हो ।
खो जाऊँ अपने आपमें कुछ इस तरह कभी
ढूँढा करूं मैं खु़द को, मुझे ही ख़बर न हो ।
रहने न दूंगी मैं भी इबादत में कुछ कमी
पर तेरी रहमतों में भी कोई कसर न हो ।
"शुभदा" पे भी निगाहे करम कर मिरे ख़ुदा
इतना भी मुझ ग़रीब से तू बे ख़बर न हो ।
(3)
कर न पाया कोई जो वो काम उसने कर दिया
राहे उल्फ़त में मुझे बदनाम उसने कर दिया ।
फेर कर मुंह यूं गया जैसे कोई रिश्ता न था
इक नए आगाज़ का अंजाम उसने कर दिया ।
ख़्वाब जो आंखों ने मेरी एक देखा था कभी
उसकी हर ताबीर को नाकाम उसने कर दिया ।
जुस्तजू जिसकी लिये जागी थीं आंखें रात भर
उम्र भर का हिज्र मेरे नाम उसने कर दिया ।
ज़िन्दगी में ये मिला मुझको मुहब्बत का सिला
बेवफ़ा के नाम से बदनाम उसने कर दिया। ।
बेच कर ख़ुद को भी मैं क़ीमत चुका सकती नहीं
अपने दिल का इतना ऊंचा दाम उसने कर दिया ।
वो है "शुभदा" ख़ुद शराफ़त की बुलंदी पर मुक़ीम
कू ब कू मुझको मगर गुमनाम उसने कर दिया।
दोहे
जीवन कठिन सवाल सा,बोझिल -बोझिल श्वांस।
मेरे हिस्से में लिखा,ये कैसा उच्छ्वास।।
धनवानो का नगर ये,लगता बहुत अजीब।
दो रोटी सुख चैन की,होती नहीं नसीब।।
मौसम सा है आदमी,पल-पल बदले रूप।
कभी प्रेम की छाँव है,कभी क्रोध की धूप ।।
सागर अब कैसे करे,यहां नदी का मान।
दगाबाज लहरें हुई,साहिल है हैरान।।
-थके से लोग हैं,मुरझाई सी शाम।
सूरज ने दिन लिख दिया,अंधियारे के नाम।
दूरूर देश के मेघ ये कब बरसाते नीर।
उमड़-घुमड़ कर ये सदा,दे जाते हैं पीर।।
सपना नयनों से सखे, लगा बहुत ही दूर।
जब तक लब खामोश हैं ,पूछे कौन हुजूर।।
गरी खोलो याद की,छोड़ो सभी मलाल।
अपना है बस पल यही,कहे गुजरता साल।।
राधा कहती श्याम से,सुनो हमारी बात।
जब तेरी बंसी बजे,सुध-बुध खोता गात।।
बता कौन संसार से ,गया किसी के साथ।
आया खाली हाथ सब,जाना खाली हाथ।।
दुनियां की इस भीड़ में,लुटे सभी सुख चैन।
मन ये व्याकुल सा रहा,रहे बरसते नैन।।
करते जो संसार में,बस अच्छे ही काज।
वो ही तो सदियों तलक, दिल पर करते राज।।
समझा जिसको भी सगा, करी उसी ने घात।
कर यकीन उन पर सभी,कह दी मन की बात।।
जलता दीपक रात भर,लाता वही सुप्रात
सपनो में आकर कभी,पूछो मन की बात।।
अनायास मैं चोंक कर,यूँ उठ जाती रात।
जैसे आई याद वो,अल्हड़पन की बात।।
कभी-कभी तकदीर भी,दिखलाती यूँ खेल।
अपने लगते गैर से,करते दुश्मन मेल।।
देख धुन्ध को हो रहे,आज सभी जन दंग।
धूप छुपी आकाश में,लेकर सूरज संग।।
निरक्षर को संसार में,कहीं मिले न मान।
रहता है बिन ज्ञान के,नर यहां पशु समान।।
अब रिश्तों की आड़ में, होते देखो पाप।
काला है कुछ दाल में,करो गौर ये आप।।
सभी जगह परिवार वह, पाता है सम्मान।
मात,पिता समझें सुता-सुत को एक समान।।
शुभदा वाजपेयी
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