बेशक दिल को सदमा गहरा लगता है।
सुनने वाला भी जब बहरा लगता है।
आँसू भर देता है हंसती पलकों में,
यही वक्त जो आज सुनहरा लगता है।
जीवन की हर शाम वहीँ पर ढलती है,
दर्द जहाँ पहले से ठहरा लगता है।
बाजे बजते हैं तेरी तो खुशियों पर,
मेरी खुशियों पर क्यूँ पहरा लगता है।
कभी जिगर यह फूला नहीँ समाता है,
कभी यही दिल है जो सहरा लगता है।
सोच समझ कर ही घर से चलना होगा,
और घना ये होता कुहरा लगता है।
कुछ तो है जो उसके रुखसत होते ही,
उतरा उतरा सबका चेहरा लगता है।
प्यार उल्फत मुहब्बत वतन में रहे ।
प्यार उल्फत मुहब्बत वतन में रहे।
गीत गाये समर्पण का हर आदमी
द्वेष नफरत न अपने चमन में रहे।
गीत गाये समर्पण का हर आदमी,
त्याग की भावना जानोतन में रहे।
प्राण निकले तो कोई न उँगली उठे,
दाग भी कुछ न अपने कफन में रहे।
शस्त्र लेकर रहे ये हिमालय खड़ा,
ये रवानी भी गंगोजमन में रहे।
देश अपना सभी धर्म का देश है,
एकता भाव हर एक मन में रहे।
मंदिरों में भी मुस्लिम करें आरती,
मस्जिदों में भी हिन्दू भजन में रहे।
जब जमीं ये हमारी पुकारे हमें,
एक उत्साह हर एक कण में रहे।
दर्द जिगर के कम होते हैं।
जब अच्छे मौसम होते हैं।
दरश तेरे जब हो जाते हैं,
फिर इस दम में दम होते हैं।
उन्हें पता क्या कितनी रातें,
भूखे प्यासे हम होते हैं।
जब तुम पास नहीँ होते हो,
साथ हजारों गम होते हैं।
चेहरा चेहरा देख चुका हूँ,
सब पर हाजिर खम होते हैं।
खुश होती है दुनिया जब भी,
अपने बीच अलम होते हैं।
वह किस्मत वाली होती है,
जिसके साथ बलम होते हैं।
दो दिल, दो मिलती हैं नदियाँ,
तब जाकर संगम होते हैं।
हवा यूँ गली से गुजरने लगी है।
मुहब्बत जमाने से डरने लगी है।
वफाओं पे भी उठरही हैं उगलियाँ,
नई चेतना यूँ उभरने लगी है।
हया जब से परदे से बाहर हुई है,
नजर से सभी की उतरने लगी है।
बुझाये गये हैं दिए मुफलिसों के,
तेरी जब भीमहफिल सँवरने लगी है।
निगाहें अभी तक मिलाती न थी जो,
येक्या बात है बात करने लगी है।
न रोटी न पानी न कपड़े -ठिकाने,
कहाँ किसकी हालत सुधरने लगी है।
आँखों आँसू दिल घबराये मिलते हैं।
श्रम सीकर में लोग नहाये मिलते हैं।
अपनों में अपनापन होता तो कहते,
अपनों जैसे लोग पराये मिलते हैं।
लिखोअगर तो उपन्यास बन जायेगा,
इतने वो दुख दर्द छुपाये मिलते हैं।
हाथ मुहब्बत के अब कौन बढ़ाता है,
लोग अधिकतर बाह चढ़ाये मिलते हैं।
गैरों से आशा करते हैं उल्फत की,
नफरत के शोले दहकाये मिलते हैं।
सूरज आग उगलने पर आमादा है,
जीवन पथ पर कहीं न साये मिलते हैं।
हँसते वो तो हैं मेरी मजबूरी पर,
जाने कैसे शीश झुकाये मिलते हैं।
तन मन से रखवाली होगी।
तब पुष्पित हर डाली होगी।
आरोपों के तीर चलेंगे,
जब जब कुर्सी खाली होगी।
प्यार मुहब्बत जब बरसेगा,
घर की हवा निराली होगी।
आँगन में वो चाँद बुला लो,
रात न कोई काली होगी।
जब वापस तुम घर आओगे,
शाम तभी मतवाली होगी।
कितने दिन के बाद बता दो,
सबके आगे थाली होगी।
माँ के मन की कर ले पगले,
कितने सपने पाली होगी।
जिगर बेतौर घबराया हुआ है।
सुबह का ख्वाब यूँ आया हुआ है।
ये गाड़ी,फ्लैट,पद,बल,कुर्सियों का,
नशा हर आँख में छाया हुआ है।
बरसता मेघ यह पानी नहीँ है,
जमीं को सिर्फ तड़पाया हुआ है।
किसे फुर्सत, कोई क्या पूछता है,
कोई क्यूँ हाथ फैलाया हुआ है।
गरीबी नाम किसकिस का बताये,
जिसे हर शख्स ठुकराया हुआ है।
अपव्यय बेतहासा हो रहा है,
बहस में वक्त भी जाया हुआ है।
जो होकर सामने ललकारता था,
वशर वह हाथअब दाँया हुआ है।
शिवनारायण शिव
नई बस्ती, रावर्ट्सगंज, सोनभद
मोबाइल 9450965898
परिचय
परिचय--गीत,गजल, मुक्तक,दोहे तथाअन्यविधाओं में रचनाओं का सृजन एवंविभिन्न स्थापित पत्रिकाओं में प्रकाशन।
आकाशवाणी से कई वर्षों से प्रसारण। दो
गजल संग्रह, एक तनहा जिन्दगी और गाँव सेबाजार तक, प्रकाशित। दोगजल संग्रह तथा दोकविता संग्रह प्रकाशनार्थ तैयार।
DSC
परिचय--गीत,गजल, मुक्तक,दोहे तथाअन्यविधाओं में रचनाओं का सृजन एवंविभिन्न स्थापित पत्रिकाओं में प्रकाशन।
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