Saturday 11 May 2019

श्रीमती आशा शैली के कुछ दोहे

नैनीताल , उत्तराखण्ड की कवयित्री आशा शैली  के कुछ दोहे
यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ । आशा जी शैल सूत्र नामक एक  पत्रिका अनेक
वर्षों से मुद्रित रूप में सम्पादित एवम् प्रकाशित कर रही हैं । वार्धक्य
में भी वे बहुत सक्रिय हैं ।
सुधेश

1.
सकंट जीवन में सखे, देते हमको सीख
कभी न हाथ पसारिए, कैसी भी हो भीख।।

2.
सुख दुख दोनों रात दिन, जान लेहु यह भेद
रहे उजाले में मगन, रजनी में क्या खेद।।

3.
दया पात्र पर कीजिए, रह कुपात्र से दूर
पात्र गहन होते नहींं, थोथे मद में चूर।।

4.
यदि संकट हो देश पर, तज कर सब अभिमान
काम देश के आएँगे, मन में लीजे ठान।।

5.
शत्रु दिखाता आँख है, कठिन समय है आज
वीरों के बलिदान की, रखनी हम को लाज।।

6.
देते हैं जो राष्ट्रहित, तन मन जीवन प्राण
नमन उन्हें शत् शत्  नमन शत शत उन्हें प्रणाम।।

7.
कैसे होता शुभ सखे, नित नित नवल प्रभात
आस्तीन के सर्प ही, लगा रहे  जब घात।।

8.
बलिदानो का हो गया, शुरू नया अध्याय
अन्यायी के पाप का, करें शनी अब न्याय।।

9.
सुमन कली दोनों हँसे, पूर्ण हो गई चाह।
बलिदानी के अंग लगे, मिली स्वर्ग की राह।।
10.
नहींं लेखनी में सखे, अब पहली सी धार
कमी न होती द्रोह की, लाख करो धिक्कार।।

11.
धन्य देश जिसका हुआ, सैनिक वज्र समान
धन्य हुए हम जब रहा सैनिक का सम्मान ।।

12.
आज देश को चाहिए, पवनपुत्र हनुमान
दानव दल का दमन कर, रखे देश का मान।।

13
सुन्दर फूलों से सजा मितवा अपना देश
सुख समृद्धि देश की, हरती सभी कलेश।।

14.
निंदा करता मित्र की, उसे कहें क्यों मीत?
दोष न देखे मीत के, यही प्रीत की रीत ।

15.
जग में अपने हैं सभी, तजो घृणा और द्वेष
प्रेम चिरंतन है सदा, प्रेम हमेशा शेष।।

16.
सब को अपना जानिए, क्या राजा क्या रंक
सब पर सूरज तप रहा, मधु बरसाय मयंक।।

17.
समय न बाँधे बंध सका, ज्यों मुट्ठी में रेत
बन सुगंध बिखरो सखा, बस यह अपना हेत।।

18.
उत्तम धन है ज्ञान धन, सखा सनेही मीत
यह तो रक्षक हो सदा,  समय भले विपरीत।।

19.
यह प्रत्यक्ष प्रमाण है, ज्ञान बड़ा धन होय
जग देता सम्मान है, ज्ञान न छीने कोय।।

20.
ज्ञानी करें विवेचना, तभी सार्थक मान
तभी सफल हो लेखनी, सफल हुआ श्रम जान।।

21.
प्रकृति सब लौटा रही, मानव जो भी देत
विषयुत डाली खाद जब, तो बंजर हैं खेत।।

22.
धरा, सुमन, पर्वत, नदी,  भारत की हैं आन
रहे समर्पण देश हित, सखा परम हित मान।।

23.
कुण्ठित होती बुद्धि जब, तभी लगा यह रोग
प्रेम भाव को छोड़ कर, लगे झगड़ने लोग।।

24.
यह कहती सर्दी हमें, मुझे न जाना भूल
चल पहाड़ पर आइये, जब दे गर्मी शूल।।

25.
भाग्य कहाँ तक रूठता, कर्मठ नर से मीत
भाग्य भरोसे क्यों रहें, करें कर्म से प्रीत ।

26.
धूल धुआँ मानव करे, और प्रकृति को दोष
वो तो निपट निदोष है, रे मानव कर होश।।

27.
परहित जीवन हो सखे, कहाँ रहा वह व्यर्थ
अर्थ हेत उलझे रही, गई व्यर्थ सामर्थ।।

28.
जो भी अपना बन गया, मन से कभी न जाय
प्रीत निगोड़ी रीत यह, रहते प्राण निभाय।।

29.
संकट में जब साथ दे, सखा-सनेही मीत
जनम जनम की जानिए, तब ही सच्ची प्रीत।।

30.
देखनहारी दृष्टि है, कितनी सखे उदार
दोषों में  गुण देखती, करती है सत्कार।।


--
asha shailly
इन्दिरा नगर-2, लालकुआँ, जिला नैनीताल-262402

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